Sunday, July 13, 2025
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भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति और कायस्थ जाति का उद्भव

by KhabarDesk
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Bhagwan Chitragupta  : हिंदू धर्म में कायस्थ जाति का क्या स्थान है यह जानना अति आवश्यक है, क्योंकि इसे लेकर कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न की जाती है। कायस्थ जाति के इतिहास के विषय में यह जानकारी आवश्यक है कि कायस्थ जाति कि उत्पत्ति कैसे और किन परिस्थितियों में हुई । मृत्यु के देवता सूर्य पुत्र यमराज के द्वारा स्वयं यमलोक न संभाले जाने पर वह सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पास गये और सहायता की प्रार्थना की तब ब्रह्मा जी की तपस्या के बाद उनकी उत्पत्ति हुई ।

भगवान चित्रगुप्त के जन्म की कथा :-

सूर्यपुत्र यमराज जब अपने यमलोक के शासन की बागडोर संभालने में असमर्थ हुये और उनके अनुज शनि देव भी जब उनका सहयोग नहीं कर पाये तो वह सभी देवताओं के साथ सृष्टि के देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे निवेदन करते हुये कहने लगे कि -“हे प्रभु!आपअब यह कार्य किसी और को सौंप दीजिये मैं अब इसे नही संभाल पा रहा । मृत्यु लोक में जीव जंतुओं की संख्या तो निरंतर बढ़ रही है पर वहाँ से कोई भी मृत्युलोक छोड़ने को तैयार नहीं ।

ब्रह्माजी ने ध्यान पूर्वक उनकी बात सुनकर उन्हें सांत्वना देते हुये कहा :-“मुझे इसका उपाय खोजने दो जब तक कोई दूसरा प्रबंध नहीं होता आप जैसे भी हो अपना कार्य करिये”। यह कह कर ब्रह्मा जी आत्म शक्ति की तपस्या में लीन हो गये उनकी आराधना करने पर जब एक हजार एक सौ(11000) वर्ष व्यतीत होने पर उनके तप के प्रभाव से उनके सर्वांग शरीर से उनकी छाया की प्रतिरूप एक पुरुष की उत्पत्ति हुई । उसने ब्रह्मा जी को प्रणाम करते हुये कहा:-

” हे पिता श्री! मैं अभी तक आपके चित्त में गुप्त रूप से निवास कर रहा था परंतु अब आपके द्वारा तप की आराधना से आपके विचार चिंतन द्वारा मेरा प्राकट्य हुआ । इसलिए अब आप ही मुझे मेरा नाम दीजिए एवं किस कार्य के लिये मेरा स्मरण किया वह कार्य भी मुझे बतलाईये ।”

ब्रह्मा जी ने कहा:- पुत्र!चित्त में गुप्त रूप से निवास करने के कारण तुम्हारा नाम *चित्रगुप्त *होगा। मेरी काया से उत्पन्न होने के कारण तुम्हारा दूसरा नाम
भी कायस्थ होगा। आपके वंशज संसार में कायस्थ नाम से ही जाने जायेंगे ।अपनी तपस्या के द्वारा वरदान मे मैनें तुम्हें धर्मराज के धर्मपालन में सहयोग के लिये पाया है ।अत: धर्मराज के सहयोगी बन कर आज से तुम धर्माधिकारी के रूप में कार्य करोगे ।

मृत्यु लोक के सभी प्राणियों के कर्मों का लेखा जोखा करने के लिये आपका हथियार कलम दवात एवं बही खाता होगा साथ ही रक्षा के लिये तलवार भी । तुम्हारे लिखे को कोई मिटा नहीं सकेगा । धर्मराज को भी तुम्हारी बात माननी होगी । उनके इस प्रकार से प्राकट्य का समाचार पाकर सभी देवताओं के साथ सूर्यपुत्र यम अपने पिता के सहित आये और हर्षित होकर उनकी वंदना कर आभार प्रकट करते हुए ब्रह्मा जी के आदेश पर सम्मान पूर्वक उनकी वंदना करते हुये अपने साथ यम लोक ले गये । तब से धर्मराज की चिंता समाप्त हुई और चित्रगुप्त जी ने उनके सहयोगी के रूप में ही स्वयं धर्माधिकारी बनकर कार्यभार संभाला । इसलिये कायस्थ जाति  पहले लेखन का कार्य करने के साथ ही शस्त्र विद्या में भी निष्णात थी । सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करने का कार्य चित्रगुप्त महाराज ही करते हैं । उसी के आधार पर उनका निर्णय होता है ।

समाज के चार वर्ण ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र से इतर कायस्थ जाति है ।जिसकी पूजा स्वयं वशिष्ठ मुनि को उनका मंदिर अयोध्या में बनवाकर भगवान श्रीराम के साथ करनी पड़ी । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण वहां का चित्रगुप्त मंदिर है। वह हिंदुओं के भी चारों वर्णों से ऊपर है जिनकी पूजा भगवान के रूप में स्वयं महर्षि वशिष्ठ ने की और उन्हें पूजन में दक्षिणा देकर सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करते हुये ब्राह्मणों से भी पूज्य बतलाया । उस समय उज्जैन में ब्रह्मा के शिष्य सुधर्मा ऋषि ने अपनी पुत्री इरावती का विवाह उनके साथ किया । उज्जैन का चित्रगुप्त मंदिर इसका साक्ष्य है । बाद में सूर्य देव ने भी चित्रगुप्त जी की प्रसन्नता के लिये अपनी पुत्री दक्षिणा का विवाह उनके साथ किया । आज भगवान ‌चित्रगुप्त महाराज की संतान कायस्थ होने का हमें गर्व है कि हम ऐसे महान  पूर्वज की संतान है जिनके हाथ में कलम और तलवार दोनों है जिसका वह समयानुसार उपयोग कर सकते हैं । भगवान चित्रगुप्त महाराज धर्मधिकारी है जो सभी के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं ।

भगवान चित्रगुप्त का विवाह ब्रह्माजी ने उज्जैन के राजा की पुत्री इरावती से हुआ । दूसरा विवाहशसूर्यपुत्र मनु की पुत्री दक्षिणा नंदिनी से हुआ ।
दोनों पत्नियों से उन्हें बारह पुत्रों की प्राप्ति हुई ।षइरावती के आठ पुत्र,दूसरी पत्नी दक्षिणा से चार पुत्र इस तरह बारह पुत्र हुये जो कायस्थ कहलाये

(1) श्रीवास्तव (2,) सक्सेना (3)माथुर
(४) कुलश्रेष्ठ,(5)भटनागर,(6)निगम
(7)अम्बष्ट (8)सूरध्वज,(9) कर्ण (10)गौड़
(11)अस्थाना (12) वाल्मीकि ।
यह बारह पुत्र चित्रगुप्त महाराज का परिवार हैं जिन्होंने अपने पूर्वज चित्रगुप्त जी की लेखनी और तलवार को ही अपनी जीविका का साधन बनाया ।
ऊँ भगवान चित्रगुप्त महाराज के चरणों में उनकी वंदना करते हुये सादर नमन । वह सभी को सद्बुद्धि प्रदान करें ।
ऊषा सक्सेना

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।

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