Gupt Navratri 2025 : गुप्त नवरात्रि अष्टम महाविद्या की अधिष्ठात्री देवी बगलामुखी उग्र कोटि की देवी है। इनका दूसरा नाम माता पीताम्बरा है प्राचीन काल में एक बार भारी प्रलयकारी आंधी तूफान एवं वर्षा से संपूर्ण सृष्टि में प्रलय की स्थिति उत्पन्न होगई । सभी का जीवन संकट में पड़ गया। इस विकट स्थिति से उबरने के लिये सभी देवता एवं ऋषि मुनि भगवान विष्णु की शरण में गये । तब भगवान विष्णु ने सभी के साथ मिल कर आद्यशक्ति से उनके शरणागत होकर प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिये और बगला के रूप में प्रकृति के द्वारा आई आपाद बाधाओं को दूर कर प्रकृति को सुंदर बना कर सृष्टि की रक्षा की।
वैशाख मास शुक्ल पक्ष की दुर्गाष्टमी को माँ बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है
देवी बगलामुखी का प्राकट्य वैशाख मास शुक्ल पक्ष की दुर्गाष्टमी को माँ बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। देवी का स्वरूप अद्भुत है। सागर के मध्य स्थित मणिद्वीप में अनमोल मणिमय रत्न जटित स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान स्वर्ण कांतिमान गोरा पीत वर्ण रंग, पीले परिधान धारण किये कंठ मे पीले फूलों की माला पहने मुखमंडल पर मोहक मुस्कान। तीन नेत्र मस्तक पर अर्द्धचंद्र सोने का किरीट पहने । बायें हाथ से दैत्य की जिह्वा को पकड़ खींचती एवं दाहिने हाथ में गदा लिये ऊपर उठाकर प्रहार की मुद्रा में अत्यंत आकर्षक रूप अपने भक्तों की रक्षा में एक हाथ अभय और दूसरा वरद मुद्रा में है।
शत्रु विनाश के लिए होती है पूजा
देवी का यह रूप उग्र होकर भी अपने भक्तों को बोलने की शक्ति देने वाला एवं उनके शत्रुओं की बोलने की शक्ति को छीनने वाला है। इसीलिए इनकी पूजा आराधना शत्रु के विनाश एवं स्वयं की शक्ति को अर्जित करने के लिये की जाती है। जो मनुष्य सच्चे मन से माँ बगला देवी की पूजा एवं आराधना करता है देवी के आशीर्वाद से उसका कोई भी बाल बांका नही कर सकता। मांँ बगला मुखी की शक्तिपीठ के रूप में तीन ऐतिहासिक मंदिर है (1) हिमाचल प्रदेश -कांगड़ा में (2) मध्य प्रदेश -दतिया में (3) मध्यप्रदेश -शाजापुर नलखेड़ा में है।
उषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।