Bastar Dussehra : भारतीय संस्कृति की अनूठी मिसाल और धार्मिक अनुष्ठानों के रहस्य के प्रति न सिर्फ देश के अंदर, बल्कि पूरी दुनिया में एक ख़ास आकर्षण रहा है। धार्मिक-सांस्कृतिक त्योहार के एक ऐसे ही रहस्य से आपका परिचय कराने ले चलते हैं छत्तीसगढ के बस्तर इलाके में।
हिन्दू धार्मिक त्योहार, दशहरा का महत्व अपने विशेष प्राचीन पौराणिक आख्यानों के कारण सबके मन में एक ख़ास जिज्ञासा पैदा करता है। इसकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि और अनुष्ठान के अनेकों पहलूओं का विवरण हमें कई बार तिलस्मी आभास देता है!
बस्तर का अनोखा दशहरा (Bastar Dussehra)
नवरात्रि के साथ त्यौहारों की भी शुरुआत हो जाती है। दशहरे से उत्सव और उल्लास का माहौल बनने लगता है। देश भर में दशहरे का त्यौहार अलग-अलग अंदाज और रंग में मनाया जाता है। कुल्लू और मैसूर का दशहरा देश विदेश में मशहूर है। जिसे देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। लेकिन एक बार आप बस्तर का दशहरा (Bastar Dussehra) जरूर देखिए।
माना जाता है 13वीं सदी में बस्तर राजवंश के चौथे राजा पुरुषोत्तम देव के समय इसकी शुरुआत हुई थी। दशहरा मनाने का अनोखा अंदाज आज भी उसी उत्साह और रंगारंग अंदाज में जारी है। यहां के दशहरा में स्थानीय देवी दंतेश्वरी देवी की अराधना की खास परंपरा है। सामान्य तौर पर 10 दिन चलने वाला दशहरा उत्सव यहां 75 दिनों तक चलता है, जो किसी सम्मोहन के जैसा पूरे वातावरण में महसूस किया जा सकता है। यह दुनिया का अनोखा सबसे लंबा मनाया जाने वाला उत्सव है!
बस्तर का दशहरा दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला उत्सव
छत्तीसगढ़ में बस्तर का दशहरा (Bastar Dussehra) खूब मशहूर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दशहरे का ये उत्सव दुनिया में सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाला उत्सव है। जी हां, बस्तर में दशहरे का उत्सव दस बीस नहीं पूरे 75 दिन तक चलता है। यही वजह है कि इस उत्सव को दुनिया में सबसे लंबा चलने वाला उत्सव माना जाता है। इस उत्सव की शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई थी जब बस्तर राजवंश के चौथे शासक राजा पुरुषोत्तम देव ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। छह से ज्यादा शताब्दियों के बीत जाने के बाद भी यह त्यौहार वैसे ही परंपरागत रूप से मनाया जाता है जैसे सदियों पहले मनाया जाता था।
13वीं शताब्दी में शुरू हुआ था बस्तर का दशहरा
आज जबकि हर त्यौहार थोड़ा बहुत आधुनिकता के रंग में रंग चुका है तो ऐसे में छत्तीसगढ़ के बस्तर का दशहरा आज भी पूरी तरह से आदिवासी परंपरा और धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप ही मनाया जाता है। दशहरे का ये उत्सव अपने निराले अंदाज के कारण देखने वालों को अद्भुत संसार में ले जाता है।
2 अक्टूबर से 19 अक्टूबर तक दिखेंगे उत्सव के खास रंग
वैसे तो 75 दिन तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत 4 अगस्त को हो चुकी है, लेकिन आखिर के 18 दिनों में यह उत्सव अपने चरम पर पहुंच जाता है। इस दशहरे में महिषासुर मर्दिनी की आराधना की जाती है। बस्तर के दशहरे में लकड़ी के एक विशाल रथ का निर्माण किया जाता है, उसमें माता की डोली सजाकर रथ को घुमाया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत ‘पाट जात्रा’ से होती है जिसमें साल की लकड़ी की पूजा की जाती है और फिर इसी लकड़ी से रथ निर्माण में लगने वाले औजार बनाए जाते हैं। लकड़ी की पूजा राजमहल के सामने की जाती है। रथ को बनाने के लिए साल, तिनसा या बीजा प्रजाति की लकड़ियों का इस्तेमाल करने की परंपरा है। रथ बनाने में किसी भी आधुनिक औजार का प्रयोग नहीं होता है। इसमें केवल पारंपरिक औजार जैसे कुल्हाड़ी, टांगिया इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है। इस उत्सव के लिए एक वर्ष चार पहियों वाला रथ तो दूसरे साल 8 पहियों वाला रथ बनाया जाता है। इसे विजय रथ कहा जाता है।
इस साल हो रहा है 8 पहियों वाले विजय रथ का निर्माण
मान्यता है कि इस उत्सव को शुरू करने वाले राजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त थे। उन्होंने जगन्नाथ पुरी की पदयात्रा की थी। पदयात्रा पूरी करने पर उन्हें रथपति की उपाधि दी गई और उन्हें 16 पहियों वाला रथ उपहार में दिया गया था। तभी से दशहरे की अवसर पर रथ के परिचालन की परंपरा शुरू हो गई। 4 अगस्त से शुरू हुआ यह 75 दिन का महाउत्सव 19 अक्टूबर को समाप्त होगा। यह त्यौहार छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनजातीय समुदायों की साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। 4 अगस्त को पाट जात्रा से शुरू हुए महोत्सव का समापन 19 अक्टूबर को बस्तर में ‘मावली माता’ की डोली की विदाई से होगा। 75 दिन की इस महोत्सव में 15 प्रमुख रस्में होती हैं जिसमें सभी वर्ग और समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) महापर्व के 15 पड़ाव
4 अगस्त पाट जात्रा विधान
16 सितंबर डेरी गड़ाई पूजा विधान
2 अक्टूबर काछन गादी पूजा विधान
3 अक्टूबर कलश स्थापना पूजा विधान
4 अक्टूबर जोगी बिठाई पूजा विधान 5 से 10 अक्टूबर नवरात्रि पूजा,रथ परिक्रमा पूजा, सिरहा कर भवन से मां दंतेश्वरी मंदिर तक
10 अक्टूबर बेल पूजा विधान
11 अक्टूबर महा अष्टमी पूजा विधान निशा जात्रा पूजा
12 अक्टूबर कुंवारी पूजा
13 अक्टूबर भीतर रैनी पूजा
14 अक्टूबर बाहर रैनी पूजा
15 अक्टूबर काछन जात्रा पूजा
16 अक्टूबर कुटुंब जात्रा पूजा
19 अक्टूबर मावली माता की डोली की विदाई पूजा
Bastar Dussehra के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने किया खास आयोजन
इस बार बस्तर दशहरा पर्व को भव्य रूप देने के लिए सरकार विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रही है। जिसमें खास है 15 अक्टूबर को होने वाला ‘मुड़िया दरबार’, बस्तर टूरिस्ट सर्किट की सैर और कई अन्य कार्यक्रम । इस बार जिला प्रशासन ने बस्तर के प्राकृतिक सौंदर्य, पुरातात्विक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों को देखने के लिए देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए ‘द बस्तर मड़ई’ कॉन्सेप्ट तैयार किया है, जिसके तहत पर्यटकों को राज्य की जनजातीय परंपरा का अवलोकन करने का मौका मिलेगा। जिसमें खास तौर पर जनजातीय लोक नृत्य, खानपान, बस्तर हाट आमचो खाजा, लोक संगीत और कवि सम्मेलन जैसे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
तो, ‘अतुल्य भारत’ के अद्भुत सांस्कृतिक, प्राकृतिक और धार्मिक त्योहार में शामिल होने चल पड़िये छत्तीसगढ और बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) के इन्द्रधनुषी रंगारंग कार्यक्रम का आनंद लें।