Cow Dung Usage : पैर में पहनने की चप्पलें कई तरह की मिलती हैं। विभिन्न रंग, डिजाइन और मटेरियल में चप्पलें उपलब्ध हैं। और कई चप्पलें तो स्वास्थ्य कारणों से भी खास तौर पर बनाई जाती हैं। लेकिन क्या कभी आपने गोबर की चप्पल के बारे में सुना है ? प्लास्टिक की,रबर की,कपड़े की, लकड़ी की, कई तरह की चप्पलें उपयोग में लायी जाती हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के रितेश अग्रवाल ने गोबर से बनी चप्पलें बना कर मार्केट में धूम मचा दी है। पशुपालक रितेश अग्रवाल ने अपने इस नये अविष्कार से लोगो के लिये रोजगार के नयें अवसर खोल दिये हैं। इसे लोगो ने इकोफ्रेंडली स्लीपर्स का नाम दिया है। कैसे बनती हैं यह गोबर की चप्पल और किस तरह से हमारे शरीर को फायदा पहुंचाती हैं, आईए जानते हैं।
रितेश अग्रवाल ने पर्यावरण की रक्षा के लिये किया अविष्कार:
छत्तीसगढ़ के रहने वाले पशुपालक रितेश अग्रवाल नें गाय के गोबर से बनी चप्पल बना कर चप्पल की दुनिया में नया अविष्कार किया है। यह चप्पल स्वास्थ्य लाभ को ध्यान मे रख कर बनायी गयी हैं। इस चप्पल से बीपी और शुगर के मरीजों को कई प्रकार से फायदा हो रहा है। गोकुल नगर मे रहने वाले पशुपालक रितेश अग्रवाल 15 साल पहलें खेती और पशुपालन के बारें मे कुछ नही जानते थे। प्रकृति के प्रति उनके जुड़ाव ने उन्हे कुछ नया करने के लिये प्रेरणा दी। वे शुरु से प्लास्टिक के उपयोग के खिलाफ थे। उनका कहना है कि प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग पर्यावरण के लिये खतरनाक हो गया हैं। इसके साथ प्लास्टिक जानवरों के लिये भी नुकसानदायक है। रितेश अग्रवाल का मानना है कि 90 प्रतिशत गाय कचरे में मिलने वाले प्लास्टिक को खाकर बीमार हो जाती है। प्लास्टिक की वजह से कुछ गाय मौत का शिकार भी हो जाती है। पर्यावरण की रक्षा के लिये और जानवरो के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उन्होनें अपनी नौकरी छोड़ कर गाय सेवा का मौका चुना।
प्रोफेसर शिव दर्शन से सीखा गोबर से सामान बनाना:
रितेश अग्रवाल नें गौशाला से गोबर खरीदकर सबसे पहलें इकोफ्रेंडली चीजें बनाना शुरु किया। इसके बाद उन्होने राजस्थान के प्रोफेसर शिव दर्शन मलिक से सीख कर गोबर की ईटें,दीये,गोबर की मूर्ती आदि बनाना सीखा। इसके साथ वे राज्य सरकार द्वारा गठित गोठान को संभालने का काम भी करते हैं। गोठान बेसहारा और भूखी, घूमती गाय के लिये बनी एक गौशाला हैं । छत्तीसगढ की सरकार ने साल 2018 – 19 में इस गौशाला का गठन किया था। रितेश इस गौशाला की गाय का पूरी तरह से ध्यान भी रखते हैं। सब्जी मंडी से, इस्तेमाल ना की जाने वाली सब्जियां ला कर गायों के लिये चारा बनाते हैं। इसके बाद गाय के गोबर का इस्तेमाल अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाने मे करते हैं ।
गोबर से बनी चप्पल में लगने वाला सामान:
रितेश का कहना है कि गाय के गोबर से सामान बनाने की प्रक्रिया पुरानी और सरल है। गोबर से चप्पल बनाना पुरानी पद्धति पर आधारित है। इसमें चूना, कुछ जड़ी-बूटियों,गोबर पाउडर और गोहार गम मिला कर चप्पल बनाई जाती है। यह चप्पल 3 से 4 घंटे भीगने के बाद भी खराब नहीं होती है। इसका इस्तेमाल घर ऑफिस और कार्यस्थल पर किया जा सकता है। 1 किलो गोबर से 10 चप्पलें बन जाती हैं ।
गोबर की चप्पल की खासियत:
गोबर से बनी चप्पल की खासियत यह है कि इसे पहनने से बीपी, शुगर के मरीजो को फायदा महसूस हुआ। इस चप्पल को मरीजों ने पहन कर फर्क महसूस किया। रितेश ने बताया की जो लोग बतौर सैंपल चप्पल घर ले गये थे। उन्हे अपने स्वास्थ्य में फर्क महसूस हुआ। जिसके बाद उन्होने और चप्पल के ऑर्डर दिये। एक जोड़ी चप्पल की कीमत 400 रुपये है।
बबीता आर्या