Bundelkhand : लोक पर्व और लोक साहित्य किसी भी क्षेत्र की अपनी सांस्कृतिक विरासत होती है। आज ऐसी ही लोककला और संस्कृति जो धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है आइए उसके विषय में जानते हैं । बुंदेलखंड के क्षेत्र महोबा , छतरपुर ,दतिया ,टीकमगढ़ ,बांदा ,झांसी, जालौन, कानपुर औरैया, इटावा के ग्रामीण क्षेत्रो में अब भी वहां के लडकों और कुंआरी लड़कियों के द्वारा यह खेल खेला जाता है। कुँआरी लड़कियां शादी के बाद अंतिम बार इस खेल को उजाया अर्थात पूरा हुआ के रूप में खेलती हैं ।
नवरात्रि के नौरता खेलने के बाद टेसू अंतिम दिन सुआटा नामक राक्षस का वध कर देता है । झिंझिया नामक अपनी प्रेमिका राजकुमारी को उसकी कैद से मुक्त कर विवाह करना चाहता है । झिंझिया भी टेसू की बहादुरी से उस पर रीझ कर उससे विवाह करना चाहती है । एक अधूरी प्रेम कहानी दशहरे के दिन से प्रारम्भ होती है। दोनों पक्ष से विवाह की तैयारियां होती हैं ।
विवाह के लिये छोटे बड़े अमीर गरीब जाति पांति का भेद भुला कर सभी के घर जाकर दान मांगा जाता है । लड़कियां झिंझिया के लिये कुम्हार के यहां से अलग से झिंझरी दार छोटा घड़ा या मटकी खरीद कर लाती हैं बाद मे उसकी तली में गेहूं अनाज के रूप में डाल कर उसके अंदर सरसों के तेल का दिया जला कर रखती हैं। ऊपर से उसे एक मिट्टी के पात्र से ढक कर रात्रि में घर-घर झिंझिया लेकर मंगल गीत गाती हुई घर-घर दान मांगने जाते हुये गाती हैं :-
बूझत बूझत आये रे ,नारे सुआटा
पौंर भरी दालान हो नारे सुआटा ।
पलका से उतरो हो नौनी दुलैया जू
सो देव सुआटा को दान ।
पलका से उतरीं अंगना में आईं
देती हैं सुआटा को दान ।
इस प्रकार से घर घर जाकर कन्यायें सुआटा के नाम पर झिंझिया के विवाह के लिये दान मांगती है । यह विवाह भी तो अकेले नही वरन सभी के सहयोग से ही होगा । ये हमारी सामाजिक समरसता का उदाहरण भी है । दूसरी ओर लड़के भी पीछे क्यों रहें यदि लड़कियों की नायिका झिंझिया है तो लडकों का भी महानायक टेसू है। जिसने अपनी बहादुरी से लड़ते हुये सुआटा का वध किया । अब जबकि उसका विवाह होने वाला है तो वर पक्ष को भी तो सहायता की आवश्यकता है अत:लड़के भी चांदनी रात में अपने टेसू के पुतले को साथ में लेकर उसे दूल्हे के रूप में सजा कर घर-घर मांगने निकलते हैं। टेसू इस बीच अपनी प्रेमिका को देखना चाहता है, लालायित है वह उसके दर्शन के लिये । दूसरी कन्यायें झिंझिया को अपने बीच में घेर कर छिपाते हुये विवाह के पहले नही देखने देतीं ।
टेसू को लेकर मांगने गये लड़के अपनी अटपटी भाषा में गाते हैं बड़े बूढ़े सभी उसका आनंद लेते हैं।
गीत:-टेसू मेरा अड़ा खड़ा ,खाने को दही बड़ा । बड़े में निकली दुअन्नी टेसू मांगे अठन्नी ।
टेसू तब तक नही जायेगा जब तक उसे कुछ दोगे नहीं । आखिर वह विवाह कर रहा है । विवाह के लिये पैसा भी तो चाहिये । टेसू का दान मिलने पर लड़के फिर गाते हैं :-
“टेसू तुम बान-बीर ,हाथ लिये सोने को तीर ।
एक तीर मारो तो दिल्ली जाय पुकारो तो
दिल्लिया को कूकरा ,खुशी रहे तेरो पूतरा ।
जब किसी के यहां देर होती और कुछ नही मिलता तो टेसू को लेकर अड़ कर बैठे लड़के उलाहना देते हुये कहते हैं :-
टेसू अटर करे ,टेसू मटर करे
टेसू बिना लिये नही टरे, टेसू लेईं के टरे।
अधिकार पूर्वक टेसू लेकर ही जाता है ।
यह सब प्रथायें बतलाती हैं कि लड़के और लड़कियां किसी एक व्यक्ति की नही वरन सम्पूर्ण समाज को अपना मान कर अधिकार पूर्वक उनसे सहयोग के रूप मे दान मांगते । दान मांगना व्यक्ति को विनम्रता और नमन करना सिखलाता है।
दशहरे के बाद दूसरे दिन से चतुर्दशी तक यह मांगने की प्रथा चलती है। शरद पूर्णिमा की रात टेसू और झिंझिया के विवाह की रात है। झिंझिया को बीच में लेकर एक लडकी खड़े होकर झिंझिया ले नाचती है उसको घेर कर घेरा बनाकर अन्य लड़कियों गीत गाती हुई नाचती है। बारी बारी से सभी उसको लेकर बीच में आकर नाचती हैं इस तरह नृत्य गान शरद पूर्णिमा की रात टेसू और झिंझिया के विवाह की खुशी में चलता रहता है । टेसू के आने में देर हो रही आखिर क्यों अभी तक टेसू नही आया । तो लड़कियां फिर गाती हैं। झिंझिया को सांत्वना देती:- अड़ता रहा टेसू नाचती रही झिंझिया ।
टेसू को लगी प्यास ,टेसू गया टेसन से
पानी पिया बेसन से ।
आखिर टेसू आ जाता है। विवाह हो रहा था कि सातवीं भांवर के पड़ते ही शत्रु आकर उसका वध कर देते हैं और झिंझिया भी उसी के साथ सती हो जाती है। एक अधूरी प्रेम कथा सदा सदा के लिये अमर हो गई ।
इस कथा के पीछे पौराणिक काल की महाभारत युद्ध के समय की कथा भी कही जाती है । राक्षसराज घटोत्कच और मौरवी के पुत्र बर्बरीक की । जिसका वध श्री कृष्ण ने किया था । जिसके सिर को कुरूक्षेत्र की सबसे ऊंंची पहाड़ी पर महाभारत युद्ध को देखने के लिये रखा गया था । कहते हैं कि जब बर्बरीक अपनी मां से आशीर्वाद लेकर युद्ध में सम्मिलित होने जा रहा था तो उसकी मां ने कहा था जो कमजोर हो, तुम निष्पक्ष होकर उसकी ओर से युद्ध करना विजय उसी की होगी। रास्ते में उसे सुआटा राक्षस की कैद से छूटने के लिये अपनी रक्षा के लिये पुकारती राज कुमारी झिंझिया मिली जिससे सुआटा जबरदस्ती विवाह करना चाहता हे । बर्बरीक उससे युद्ध कर झिंझिया की रक्षा करता है । राजकुमारी के अपूर्व सौंदर्य पर वह मोहित हो प्रेम करने लगता है। राजकुमारी भी उसकी वीरता से प्रसन्न हो उस पर मोहित हो जाती है। बर्बरीक उसे महाभारत युद्ध से लौटने का वचन दे चला जातहै । रास्ते में कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण के वेष में मिलते हैं । श्री कृष्ण उससे पूछते हैं तुम किस की ओर से युद्ध करने जा रहे हो? तब बर्बरीक कहता है मैं कौरवों की ओर से युद्ध करूंगा क्यों कि उनका पक्ष कमजोर है अत:उन्हें ही विजय दिलाऊंगा ।
श्रीकृष्ण को पांडवों की बाजी पलटती नजर आती है वह उसकी परीक्षा लेते हुए कहते हैं कैसे किस प्रकार से । तब वह सामने खड़े एक पेड़ पर तीर चला कर कहता है, इस प्रकार से । संपूर्ण पेड़ जलकर नष्ट हो जाता है। एक पत्ता कृष्ण अपने पैर के नीचे दबा लेते हैं वह नहीं जलता। बर्बरीक कहता है जो आपकी शरण में हो उसे कौन मार सकता है। मैं समझ गया अब आप मुझे से युद्ध कर मुझे ही मार दीजिये क्योंकि मैं समझ गया यही मेरा अंत है । तब श्रीकृष्ण उससे युद्ध कर अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट देते हैं। धड़ को छोड़ सिर कहता है आपके हाथ से मर कर अमर हो गया । मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं । जब तक युद्ध चलेगा मेरा सिर उस ऊंची पहाड़ी पर युद्ध देखेगा, इसके बाद ही आप मुझे झिंझिया के लिये जीवित कर देंगे मैंने उससे विवाह का वादा किया है ।
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन जब पूछता है कि युद्ध में किसने विजय पाई तो वह हंसते हुये कहता है युद्ध में दोनों ही पक्ष से श्रीकृष्ण लड़ रहे थे जिसे उन्हें जिताना था उसने ही युद्ध जीता। श्रीकृष्ण उसके सिर को धड़ से जोड़ कर जीवित कर देते हैं मौरवी के पास लौटने के लिये । रास्ते में लौटते समय बर्बरीक झिंझिया से विवाह कर जब घर पहुंचते हैं तो मौरवी जो कि बर्बरीक की मां थी इस विवाह से इंकार करते हुये कहती है एक बार मृत्यु के बाद तुम विवाह नही कर सकते। राक्षसों के वंश का नाश करने के लिये ही श्रीकृष्ण ने तुम्हारा अंत किया है। अब इस संसार में तुम्हारा सिर ही पूजा जायेगा धड़ नही । यह सुनकर बर्बरीक ने माता की आज्ञा मानकर जलसमाधि ले ली और झिंझिया भी अंत में उनके साथ सती हो गई ।
क्या है खाटू श्याम से नाता !
कहीं कहीं इस आख्यान को कथा के रूप में भी कहा जाता है। परम्परा के रूप में उनकी अधूरी प्रेम कहानी को इस प्रकार जीवंत किया गया । राक्षस हो कर भी भीम के पुत्र घटोत्कच और उनकी माता हिडिंबा को देवी के रूप में मान्यता मिली। इसी प्रकार बर्बरीक भी अपने कटे सिर के रूप मे खाटू शयाम बनकर पूजित हुआ। बर्बरीक की माता देवी की बहुत बड़ी भक्त थी । अपने पिता मुर राक्षस के वध के बाद उसने श्रीकृष्ण से स्वयं युद्ध किया था और वह जानती थी की श्रीकृष्ण कौन है । अत: उसने कहा जब तुम श्याम का नाम पाकर अमर हो गये तो फिर विवाह करके अब तुम्हारे वंश की वृद्धि का क्या अर्थ । अत: मैं तुम्हें विवाह की अनुमति नही दे सकती । लोक परम्पराओं में छिपे गूढ़ार्थ को समझना भी मुश्किल । सुआटा के बाद टेसू और झिंझिया का दु:खद अंत शायद उनकी प्रेम कहानी और बलिदान को जीवंत करने के लिये ही खेल के माध्यम से जीवंतता प्रदान करते हुये इसे खेल के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है ।
ऊषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।