Gangaur Vrat : चैत्र माह शुक्लपक्ष की नवरात्रि में तृतीया तिथि को राजस्थान का लोकपर्व *गणगौर* मनाया जा रहा है। राजस्थान का सबसे बड़ा लोक पर्व है गणगौर, होलिका दहन के दूसरे दिन से 16 दिन तक कुंवारी कन्यायें और सुहागिनें गणगौर पूजती है। यह त्यौहार शिव पार्वती को समर्पित है। राजस्थान का सबसे बड़ा, रंगीन और धूमधाम से सामूहिक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है गणगौर।
16 दिन तक कुंवारी कन्यायें और सुहागिनें गणगौर पूजती हैं।
होली के दूसरे दिन से सोलह दिन तक कुंवारी कन्यायें प्रतिदिन स्नान करके प्रात:काल श्रेष्ठ वर पाने के लिये ईसर-गणगौर की पूजा करती हैं। जिनकी शादी हो जाती है वह शादी के बाद पहली गणगौर मायके में ही पूजती हैं। इसलिये इसे सुहाग पर्व भी कहा जाता है । चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को पार्वती जी शिव जी के साथ विवाह के पश्चात पहली बार मायके आईं थी ।उसी की याद में यह त्यौहार सुहाग पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
इस पर्व के प्रारम्भ में होलिका दहन के दूसरे दिन गणगौर पूजन करने वाली लड़कियां होली दहन की राख लाकर उसके आठ पिंड बनाती हैं। यह आठों पिण्ड गोबर के होते हैं जिनमें दूब रखकर प्रतिदिन उनकी पूजा करते है। पूजा करने के बाद दीवार पर एक काजल और एक रोली का टीका लगाते हैं। शीतलाष्टमी तक इनकी पूजा की जाती है। इसके बाद मिट्टी के ईसर -गणगौर की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है। ईसर शिव जी और गणगौर पार्वती हैं ।
लड़कियां गीत गाती हुई गणगौर से प्रार्थना करती हैं:-
“गौरी ये गणगौर माता खोल किवाड़ी
उबी थारी पूजन वाली।”
जयपुर में केवल गणगौर अर्थात पार्वती की ही पूजा होती है और अंत में उन्हीं की ही अकेली सवारी निकाली जाती है। जयपुर में यह त्यौहार दो दिन तक मनाया जाता है । जब कि अन्य स्थानों में ईसर और गणगौर दोनों की ही मूर्तियां एक साथ सजा कर धूमधाम से जलसे के साथ निकाली जाती हैं। गणगौर माता को घेवर का भोग लगा कर जल पिलाया जाता है। जयपुर में अकेले गणगौर की पूजा करने के पीछे एक कथा है।
Gangaur Vrat कथा:-
आज से 263 वर्ष पहले रूपनगढ़ के महाराजा सांवत सिंह के समय वहां के महंत ने किशनगढ़ में सवारी निकालने के लिये ईसर-गणगौर नहीं दिये थे।
जिसके कारण किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह जयपुर से ईसर जी को अकेले ही लूट लाये थे। तब से आज तक जयपुर में अकेले ही गणगौर की पूजा होती है अन्यत्र और कहीं नहीं। यह लोकोत्सव पर्व सामूहिक रूप में मनाये जाने के कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं ।
उषा सक्सेना-
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें