Ganesh Utsav : 11 दिन का गणपति उत्सव पूरे देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। लोग अपने घरों में गणपति की स्थापना कर पूजा पाठ कर रहे हैं और साथ ही बड़े-बड़े पंडालों में भी गणपति की स्थापना की जा रही है। गणपति पूजन में भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने का विशेष महत्व है। भगवान गणेश को दूर्वा क्यों अर्पित की जाती है, आज हम आपको बताएंगे।
श्री गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं ?
दूर्वा अर्थात दूब धरती पर कहीं भी बिना किसी प्रयास के अपने आप उगने वाली घास। सबसे छोटी पत्तियों वाली घास की प्रजाति जिसे हम चलते वक्त पैरों से रौंद कर चलते हैं फिर भी वह कभी नष्ट नहीं होती वरन् चुनौती देती पुन: खड़ी हो जाती है ।
यह एक ऐसा प्रश्न था जो मन को उद्वेलित कर उत्तर मांग रहा था । त्रिदेव में महादेव का ही परिवार सहित पूजन क्यों ? इस संसार के कल्याण के लिये सबसे पहले समुद्र मंथन से वासुकि नाग के मुख से उगले दाहक कालकूट विष का पान शिव जी ने किया जिसे उनकी शक्ति महाकाली ने गरल को कंठ में ही रोक नीलकंठ से महाकाल बना दिया । अंत में उनके दाह को कम करने के लिये स्वयं वासुकि नाग उनके कंठ के हार बने । शीतल चंद्र और गंगा की जलधार जटाजूट में तिरोहित हो कर उन्हें शीतलता प्रदान करने लगे।
गणेश जी ने किया था अनलासुर का पान
अपने पिता महादेव के समान ही गौरी पुत्र गणेश जी ने जब देखा कि अनलासुर नाम का दैत्य संपूर्ण संसार को अपनी आग में जला कर भस्म कर रहा है । कोई भी देवता उसका सामना नही कर पा रहे। जो भी उसके समक्ष जाता वह उसे जला कर भस्म कर देना चाहता है । देवताओं की इस प्रकार से पराजय देखकर समस्त संसार के कल्याण के लिये अपने पिता के समान ही उन्होंने भी उस अनलासुर को धुंआ के रूप में बदल कर पान कर लिया, पी लिया। जिससे सभी देवता भय मुक्त हुये, किंतु गणेश जी के उदर में अनलासुर अपना रंग दिखा रहा था । उसका पान करने के कारण वह उदर की दाह से बैचेन थे । उपचार में सभी देवता एवं ऋषि -मुनि, जड़ी बूटी आदि प्राकृतिक चिकित्सा की औषधियों से इलाज कर रहे थे, पर कहीं भी उन्हें चैन नहीं मिल रहा था। स्वयं वासुकि नाग हार बन कर कंठ पर सजे , चंद्रदेव मस्तक पर लेकिन फिर भी उनका दाह कम नही हुआ ।
हरी दुर्वा का रस पीकर शांत हुआ गणेश जी का ताप
तब सोच और चिंतन करते हुये कश्यप मुनि ने अंत में हरी दूर्वा को पृथ्वी से उखाड़ कर उसकी नरम पत्तियों को पीसते हुये उसका रस निकाल कर उन्हें पिलाया जिससे धीरे धीरे उनके उदर की दाहक ज्वाला शांत हुई। तब गणेश जी को नवजीवन मिला । इसीलिये उन्हें दूर्वा प्रिय है। वह अन्य किसी भी फल या फूल की अपेक्षा गांठ वाली नरम दूब चढ़ाने से ही प्रसन्न होते हैं । हमारे प्राचीन काल के ऋषि मुनि केवल तपस्या ही नहीं करते थे वरन् वह बहुत बड़े अन्वेषक थे जो अपने प्रयोगों के द्वारा सदा ही उनका जनहित में प्रयोग करते थे। किसी भी रोग या शंका का समाधान उनके पास होता था । सबसे अधिक गुणकारी होने के कारण हरी दूब का रस शीतलता प्रदान करता है और अपने इसी गुण के कारण वह गणेश जी को प्रिय हुई । बिना दूब के उनकी पूजा अधूरी ही मानी जाती है । जै गणेश । गणपति बप्पा मोरया ।
ऊषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।