Sunday, October 5, 2025
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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की 119वीं जयंती पर दिल्ली में ‘अशोक के फूल’ व्याख्यानमाला का आयोजन

सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत थे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः हरिवंश

by KhabarDesk
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Acharya Hazari Prasad Dwivedi Jayanti

Acharya Hazari Prasad Dwivedi Jayanti : राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने हिंदी साहित्य के अनन्य लेखक और साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को सांस्कृतिक चेतना का अग्रदूत बताया है। उन्होंने कहा कि आचार्य जी का साहित्य आम जनजीवन के समस्त पहलुओं का खूबसूरती से प्रतिनिधित्व करता है और उन्होंने साहित्य को संपूर्ण मानवजाति को सौंदर्य प्रदान करने का माध्यम बनाया।

आचार्य द्विवेदी जी की 119वीं जयंती के मौके पर साहित्य अकादमी के सभागार में शनिवार को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा शनिवार को आचार्य द्विवेदी के प्रसिद्ध निबंध ‘अशोक के फूल’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में हरिवंश ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में उक्त बातें कहीं। इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी, रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विंध्यवासिनी नंदन पाण्डेय और दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज आप वोकेशनल स्टडीज के प्रोफेसर विनय ‘विश्वास’ ने आचार्य जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।

स्मारिका ’पुनर्नवा’ और ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः विचारकोश’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण

इस अवसर पर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित स्मारिका ‘पुनर्नवा’का विमोचन किया गया। साथ ही डॉ विंध्यवासिनी पाण्डेय द्वारा लिखित पुस्तक ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : विचार कोश’ का भी लोकार्पण किया गया। ट्रस्ट की अध्यक्ष डॉ अपर्णा द्विवेदी ने ट्रस्ट की कार्ययोजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। आचार्य द्विवेदी जी के परनाती अभय पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया।

संबोधन में हरिवंश ने आज के आधुनिक जीवन की भौतिक चुनौतियों से निपटने के लिए आचार्य द्विवेदी जैसे साहित्यकारों के कार्यों को संज्ञान में रखने को आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि जिन आंखों ने आचार्य जी को साक्षात देखा होगा, वे अच्छी तरह से जानते हैं कि वे कभी न बुझने वाली लौ थे। वे बड़े साहित्यकार थे और उससे भी बड़े एक सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत थे।

आचार्य द्विवेदी के शिष्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी ने आचार्य जी के जीवन के अनछुए पहलुओं से श्रोताओं को स्मृतिबोध कराया। उन्होंने आचार्यजी के साथ बिताये गये समय को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ काल बताते हुए गुरु-शिष्य परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण बताया। पउन्होंने आचार्यजी की साहित्य शैली की विशिष्टता से परिचय कराते हुए ‘अशोक के फूल’ निबंध के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया।

डा. विंध्यवासिनी पाण्डेय ने अशोक के फूल की विवेचना परंपरा और आधुनिकता के रूप में की । दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज के प्रोफेसर डा. विनय विश्वास ने कहा कि अशोक के फूल को जीवन दर्शन से जोड़ते हुए सौंदर्य को सहजता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि सुंदरता जब सहज होती है तभी वास्तविक होती है और इसके लिए सामंजस्यता का होना आवश्यक है। मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं लोक नीति के विशेषज्ञ अविनाश चंद्र ने किया।

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