Aloevera Farming in Ranchi : घरो की छतों और बगीचों मे लगाये जाने वाले एलोवेरा को घृतकुमारी के नाम से भी जाना जाता है। एलोवेरा औषधियों गुणों से भरपूर होता हैं । आयुर्वेद में एलोवेरा को औषधियों की खान कहा जाता है। गमलो में घर की छतों पर दिखाई देंने वाले इस पौधे की पत्तियां हरे रंग की गुदेदार होती है। इसका उस्तेमाल कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट में किया जाता है। इसके उपयोगी गुणों को देखते हुए भारतीय बाजारों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी इसकी मांग बढ़ गयी है। कई ऐसी कम्पनियां या फिर संस्थाएं जो किसानों के साथ मिलकर इसकी पत्तियों की खरीद करती हैं। इसकी बढ़ती हुई डिमांड को देखते हुए रांची में एक गाँव इसके नाम से बस गया है। जिसे ‘एलोवेरा विलेज’ कहा जाता है। आइये जानते है इस एलोवेरा विलेज की कहानी।
रांची का ‘एलोवेरा विलेज’ गांव:
आयुर्वेद में जाना पहचाना नाम एलोवेरा या घृतकुमारी के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए रांची के देवरी गांव की 40 महिलाएं एलोवेरा की खेती कर रही हैं। रांची का यह देवरी गांव एलोवेरा विलेज के नाम से मशहूर है। रांची से करीब 25 किलोमीटर दूर नगड़ी प्रखंड में बसा यह देवरी गांव एलोवेरा की खेती के लिये मशहूर है। गांव के हर घर के आंगन और खेतों मे पनप रहा एलोवेरा यहां की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बना रहा है। एलोवेरा विलेज के नाम से मशहूर इस गांव की 40 महिलाएं एलोवेरा की खेती करती हैं । उन्हें इन एलोवेरा को बेचने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि बड़ी से बड़ी कॉस्मेटिक कंपनियां इनके एलोवेरा की खेती के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करके रखती हैं । जो बाद में अपनी जरूरत के अनुसार इन्हें गांव से खरीद कर ले जाती हैं।
प्रशिक्षण के दौरान दिये गये थे 50 पौधे:
इस गांव की महिलाओं ने मंजू कश्यप के नेतृत्व में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से एलोवेरा की खेती का प्रशिक्षण लिया था। उस प्रशिक्षण के दौरान सभी महिलाओं को 50-50 एलोवेरा के पौधे भी दिए गए । यह इनकी खेती की एक छोटी सी शुरुआत थी। इसके बाद उन्होंने स्वयं एलोवेरा की खेती शुरू की। इस खेती से न केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक अच्छा योगदान मिल रहा है। बल्कि इसकी वजह से महिलाओं के आमदनी में भी काफी मुनाफा देखने को मिल रहा है। इस एलोवेरा की खेती से पैसे कमाकर महिलाएं स्वावलंबी बन रही है ।
कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा कमाती हैं महिलाएं :
देवरी गांव की महिलाओं ने एलोवेरा की खेती को रोजगार का माध्यम बना लिया है । एलोवेरा की खेती करने वाली सभी महिलाएं 35 रुपए किलो के हिसाब से एलोवेरा के पत्ते बेचती हैं और हर महीने अच्छा मुनाफा कमा लेती है। इस गांव की महिला गुंजन बताती है कि उन्हें इन एलोवेरा की पत्तियों को बेचने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि कंपनियां खुद आकर गांव से एलोवेरा को काटकर ले जाती हैं। यहां तक कि उन्हें इन्हें काटने की जरूरत भी नहीं पड़ती है । उनके मुताबिक एक-एक एलोवेरा के पौधे से कम से कम 3 किलो तक एलोवेरा आराम से निकल जाता है । यानी कि अगर देखा जाए तो हर हफ्ते में कम से कम 70 किलो तक एलोवेरा निकल आता है । महीने का 25000 से 30000 रुपए आसानी से कमा लेती हैं। इस पौधे को लगाने में किसी प्रकार का खर्चा नहीं होता है । गर्मियों के दिनों में कुछ दिनों के अंतराल में इसमें सिंचाई की जरूरत पड़ती है। जबकि अन्य मौसम में इसमें कोई खास सिंचाई की जरूरत नहीं होती है । जिसकी वजह से कम लागत में यह पौधा बनकर तैयार हो जाता है। एक बड़े पौधे से अन्य दूसरा पौधा भी तैयार किया जा सकता है।
एलोवेरा का प्रयोग कई तरह से होता हैं:
एलोवेरा का प्रयोग आजकल कॉस्मेटिक प्रसाधनों में अधिक किया जाता है । इसके साथ-साथ एलोवेरा का प्रयोग स्वास्थ्यवर्धक दवाइयां में भी किया जाता है। विटामिन ए से भरपूर एलोवेरा का जूस आंखों की रोशनी को बढ़ाता है ।साथ ही कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए इसे पीना फायदेमंद भी होता है। एलोवेरा का जूस पीने से पाचन तंत्र संबंधी कई समस्याओं का तेजी से निपटारा होता है। ये हमारे लीवर को डिटॉक्स करता है। इसके साथ-साथ इसमें एंटी इन्फ्लेमेटरी एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण भी भी पाए जाते हैं। एलोवेरा घाव को भरने में तेजी से मदद करता है। इसलिए त्वचा संबंधी समस्याओं में भी काफी कारगर होता है। एलोवेरा के गुणो को देखते हुए इस समय मार्केट में एलोवेरा की डिमांड काफी अधिक है । इसीलिए आज एलोवेरा के नाम से एक ‘एलोवेरा विलेज’ नाम का गांव बन चुका है। पीएम मोदी भी इस एलोवेरा विलेज की चर्चा कर चुके हैं।