Dussehra : हिंदू मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी का त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है । आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है । ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने इस दिन रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने 9 दिनों की रात्रि के उपरांत 10 दिन के युद्ध के पश्चात दसवें दिन महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए यह त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही भारत में बौद्ध धर्म के अनुयाई इस दिन को बौद्ध धर्म परिवर्तन दिवस के उपलक्ष्य में अशोक विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। आईए जानते हैं कि इस दिन को ‘अशोक विजयादशमी’ के रूप में क्यों मनाया जाता है।
सभी राज्यों में विजयादशमी का त्यौहार अलग-अलग तरीके से मनाते है:
बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए विजयदशमी का त्योहार पूरे भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । यूं तो देखा जाए तो पूरे भारत में विजयदशमी अलग-अलग रूप से प्रचलित है, और हर जगह इसके मनाने के तरीके भी अलग-अलग है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में यह दिन भगवान राम के जीवन को दर्शाता है । जगह-जगह भगवान राम की जीवन गाथा को लेकर तरह-तरह के आयोजन और रामलीला की जाती है । ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का वध किया था । वहीं दूसरी ओर गुजरात में नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा की आराधना होती है। जगह-जगह डांडिया रास का आयोजन होता हैं । पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की तो छटा ही निराली होती है । यहां पर सजे पंडालो में मां दुर्गा का भव्य स्वरूप इतना मनमोहक होता है कि व्यक्ति देखते ही मंत्र मुग्ध हो जाता है। कुछ हिस्सों मे इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है ।
वहीं इतिहासकारों की माने तो इस दिन को अशोक विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। यह बौद्ध धर्म को मानने वालो के लिये एक विशेष दिन है। इस दिन सम्राट अशोक ने धम्म की दीक्षा ली थी। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में विजयी होने के बाद दसवें दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और बौद्ध धर्म अपनाया था। यह उनके जीवन का एक परिवर्तनकारी समय था । इस दिन सम्राट अशोक ने हिंसा का त्याग करके गौतम बुद्ध के द्वारा दिए गए सिद्धांतों को अपनाया था । अशोक ने अपनी प्रजा का हृदय किसी शस्त्र के बल पर नहीं बल्कि शांति और अहिंसा के बल पर जीतने का संकल्प लिया था।
सम्राट अशोक ने विजयादशमी के दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी:
इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई उल्लेखनीय प्रयास किये । उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध भिक्षु के रूप में श्रीलंका भेजा और वहां बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया। इसके साथ ही उन्होंने हजारों स्तूपों का निर्माण करवाया। शिलालेख और धम्म स्तंभों की भी स्थापना की। सम्राट अशोक ने उस समय कई दान और कल्याण के कार्य भी किये । इसके साथ ही उन्होंने अपने राज्य के लोगों को अशोक विजयादशमी मनाने के लिए भी प्रेरित किया। जो बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ लोगों को इस धर्म से जोड़ता है ।
अशोक ने प्रतिज्ञा ली : शांति और अहिंसा से प्राणी मातृ का हृदय जीतेंगे:
सम्राट अशोक के हृदय परिवर्तन को देखते हुए जनता ने खुश होकर सभी स्मारकों को सजाया, संवारा और उस पर दीपोत्सव किया । यह आयोजन करीब 10 दिन तक चलता रहा । इसके पश्चात सम्राट अशोक ने राज परिवार के साथ पूज्य भंते मोग्गिलिपुत्त से धम्म दीक्षा ग्रहण की । यह दीक्षा लेने के बाद सम्राट अशोक ने प्रतिज्ञा ली कि वह किसी शस्त्र के बल पर नहीं बल्कि शांति और अहिंसा के बल पर प्राणी मात्र का हृदय जीतेंगे। इससे यह पता चलता है कि कलिंग के युद्ध ने सम्राट अशोक के जीवन और उनके समकालीन भारत की दिशा बदल दी थी ।
देश के संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अशोक विजयदशमी के दिन 5 लाख लोगों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। इस ऐतिहासिक दिन को ‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है ।