Pitru Paksha : सनातन धर्म में पूर्वजों को याद करने और उनको तर्पण करने के लिए कुछ विशेष दिन निर्धारित किए गए हैं। जिन्हें पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। यह श्राद्ध पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर अमावस्या तिथि तक चलत है। पितृ पक्ष में हमारी कुंडली में उत्पन्न पितृ दोष या श्राप दोष की शांति की जाती है। ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली में पितृ दोष बनता है तो यह हमारे जीवन में कई तरह की समस्या उत्पन्न कर सकता है। ऐसा कहा जाता है यदि किसी व्यक्ति के जीवन में पितृ दोष लग जाता है तो उसे अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह समस्याएँ आर्थिक, शरीरिक और मानसिक सभी प्रकार की होती हैं । आज हम आपको पितृ दोष से मुक्ति पाने के सरल उपाय बताएंगे।
पितृपक्ष का पूर्वजों से संबंध :
गरुड़ पुराण के अनुसार पितृपक्ष के दौरान हमारे सभी पूर्वज पितृ लोक से धरती के लिए प्रस्थान करते हैं ,और वह यहां भूलोक में आते हैं । वे यहां देखते हैं कि उनके परिवारजन उनके लिए श्राद्ध कर्म कर रहे हैं और उनको याद कर रहे हैं कि नहीं । शास्त्रों के मातानुसार पितृपक्ष के दिनों में लोग अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हुए ब्राह्मण को भोजन कराते हैं । इससे उनकी आत्मा को शांति या मुक्ति मिलती है । इसके बाद वह अपने लोक वापस चले जाते हैं । ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान सभी पूर्वज पृथ्वी लोक की ओर प्रस्थान करते हैं और जो व्यक्ति उनके लिए श्राद्ध कर्म कर रहे होते हैं उनको वह सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं । इसकी वजह से उनके घर में संपन्नता और सुख शांति बनी रहती है।
श्राद्ध पक्ष की शुरुआत:
ज्योतिषीय गणना के अनुसार श्राद्ध पक्ष की शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के साथ शुरु होगी जो कि अश्विन मास की अमावस्या तिथि पर समाप्त होंगे। इस वर्ष पितृपक्ष की तिथि की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हो रही है। जो 21 सितंबर 2025 तक चलेगी । इस दौरान श्राद्धकर्म और तर्पण की विधि की जाएगी।
कुंडली में उत्पन्न पितृ दोष की स्थिति और लक्षण:
1) किसी व्यक्ति की कुंडली मैं पितृदोष की स्थिति तब उत्पन्न होती है। जब शनि, राहु, केतू ,सूर्य और चंद्रमा की विशेष युति के कारण नवम भाव पीड़ित होता है। तब यह दोष उत्पन्न होता है। नवम भाव को धर्म और पितृ का स्थान भी माना जाता है। इस प्रकार का दोष व्यक्ति के जीवन में रुकावटें , संतान संबंधी समस्याएं, स्वास्थ्य समस्या और परिवार में गृह कलेश का कारण बनता है। सूर्य पिता का प्रतीक माना जाता है यदि सूर्य किसी व्यक्ति की कुंडली में नीच का है ,अस्त है या राहु केतु से प्रभावित है तो यह पितृ दोष का ही सूचक माना जाता है।
2) यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष उत्पन्न है तो उसके विवाह में देरी होगी या रिश्ते बनकर टूटेंगे।
3) यदि किसी व्यक्ति की कुंडली मे पितृदोष निर्मित हो रहा है तो व्यक्ति को संतान सुख में बाधा अवश्य आएगी। संतान का स्वास्थ्य खराब रहेगा या संतान उत्पन्न नहीं होगी।
4) पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति के घर में अक्सर दुर्घटना या मृत्यु की संभावना बनी रहती है। किसी समय उनके घर में अकाल मृत्यु भी हुई होती है।
5) करियर में लगातार आ रही असफलताएं भी कहीं ना कहीं पितृ दोष के कारण भी होती है। कार्य का ना मिलना या एक जगह पर टिककर कार्य न करना पितृ दोष के लक्षणों का एक हिस्सा है।
6) लगातार बीमार रहना मानसिक तनाव रहना स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं बनी रहना। यह भी पितृदोष का ही एक लक्षण है।
इस प्रकार के दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृपक्ष में हमें कुछ विशेष उपाय या पूजन करने पड़ते हैं।
पितृ दोष दूर करने के उपाय:
पितृ दोष का सबसे पहले उपाय यह है कि पितृपक्ष में परिवार के सभी लोग एक साथ बैठकर हवन करें । इस हवन में परिवार का मुखिया हल्दी की माला से मंत्र का जाप करें ,और परिवार के अन्य सदस्य हवन में आहुति दें। हवन की सामग्री में काले तिल और कुशा अवश्य होनी चाहिए। प्रत्येक सदस्य के बाएं हाथ में एक हल्दी की गांठ और सिक्का होना आवश्यक है,और दाहिने हाथ से आहूति देनी चाहिए । हवन के समय एक नारियल अवश्य रखें जिसे हवन के बाद पानी में बहा दे साथ में हल्दी की गांठ भी पानी में विविसर्जित करें और सिक्के को किसी मंदिर में रख हवन के समय सभी लोग क्षमा याचना करे
1) हवन करने का मंत्र इस प्रकार से है “ओम् ग्रां ग्रीं ग्रों स: गुरुवे नमः”।
2) पितृपक्ष के दिन परिवार के सभी सदस्य पैसे इकट्ठा करके गौशाला में गाय को चारा अवश्य खिलाएं।
3) पिंडदान और तर्पण करने से भी पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इससे पितृ दोष भी शांत होता है। इसलिए प्रत्येक अमावस्या को जल में काले तिल डाल के दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके तर्पण करना चाहिए।
4) चावल और घी से बनी हुई गोलियों को मछलियों और कौए को अवश्य खिलाना चाहिए इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
5) गीता के 15 अध्याय का पाठ करने से भी पितृ दोष में राहत मिलने लगती है । रोज सुबह यदि शांत मन से इस का पाठ किया जाए तो हमें पितृदोष से संबंधित परेशानियों में छुटकारा मिलता है।
इन सबके साथ हमें अपने व्यवहार में भी परिवर्तन लाना चाहिए। किसी भी बुजुर्ग का अपमान नहीं करना चाहिए। अपने बड़ों का आदर करना चाहिए किसी को भी अपशब्द नहीं बोलने चाहिए।
बबीता आर्या
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।