Wednesday, December 17, 2025
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क्या है जलविहार, डोल ग्यारस, परिवर्तनी, जलझूलनी या फिर पद्मा एकादशी ?

by KhabarDesk
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Jalvihar Ekadashi

Jalvihar Ekadashi : भाद्रमास शुक्लपक्ष की एकादशी को जलविहार, डोल ग्यारस, परिवर्तनी या जलझूलनी या फिर पद्मा एकादशी क्यों कहते हैं ?  एक तिथि के लिये इतने सम्बोधन क्यों ? मन में सवाल उठना स्वाभाविक है। प्रत्येक नाम के पीछे छिपे उस नाम का सही सारगर्भित अर्थ और रहस्य जानना आवश्यक है ।

गणेश चतुर्थी पर यह बात जानना आवश्यक है कि पार्वती पुत्र विनायक का उनके शरीर के अवशिष्ट पदार्थ उबटन से जन्म हुआ जो अशुद्धि का प्रतीक है । उसका शुद्धि करण आवश्यक था तभी वह विवेक बुद्धि और ज्ञान प्राप्त कर सकेगा । शिव जी के द्वारा शिरोच्छेदन के साथ गजमुख निर्मल सद्बुद्धि वाले ज्ञान के गजानन गणाध्यक्ष होकर गणेश बने। प्रथम पूज्य श्रीगणेश और उनको विधिपूर्वक स्नान के पश्चात नवजीवन मिला। दसवें दिन की इस एकादशी का इसीलिए विशेष महत्व है।

क्यों कहलाई जलविहार या जलझूलनी एकादशी ?

भारतीय सनातन संस्कृति के प्रणेता वेद एवं पुराणों में इस एकादशी के विषय में विस्तार से वर्णन है । भाद्रभास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात गोकुल में प्रतिदिन उत्सव ही हो रहे थे । श्री कृष्ण को जशोदा मैया के साथ जल देवता के पूजन के लिये उन्हें पालकी में बिठा कर जलविहार के लिये यमुना तट पर ले जाकर उन्हें जल में झुलाते हुये माता जशोदा जल-देवता का पूजन करती हैं । इसीलिये इसे जलविहार या जलझूलनी एकादशी के साथ ही डोल ग्यारस भी कहते हैं। आज के दिन सभी गाँव-नगर के मंदिरों से भगवान की पार्थिव मूर्तियों को पालकी में बिठाकर पास के सरोवर में ले जाकर उन्हें जलविहार कराया जाता है । इसके पश्चात सभी मंदिरों के भगवान को एक स्थान पर प्रतिस्थापित कर उन सभी का विधि विधान से पूजन किया जाता है । इस दिन से अनंत चतुर्दशी तक कई स्थानों पर मेलों का आयोजन भी होता है । इस मेले का नाम भी उन्हीं के नाम पर जल-विहार मेला है।

इसके पश्चात ही तब अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन की प्रथा है । सभी देवताओं का अपने स्थान के लिये प्रस्थान भी होता है।  इसीलिए इसका नाम जलविहार या जलझूलिनी एकादशी है। इस दिन प्राय:नवजात शिशु के साथ उसकी मां को घर से बाहर जल देवता की पूजा के लिये ले जाया जाता है। इस दिन का श्रीकृष्ण के साथ संबंध होने से इसका विशेष महत्व है । इसीलिए गाजे बाजे ढोल बजाते हुये गीत गाते हुये ले जाते हैं । वहां माँ अपने बाल-गोपाल को गोद में ले जाकर जल देवता का पूजन करते हुये उनका अपने नवजात शिशु के लिये आशीर्वाद लेती है । जिसका अर्थ है कि हे जल देवता आप इसकी रक्षा करें । हिन्दू संस्कृति में प्रकृति का अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान है। पुरुष अहंकारी है और उसके अहं को ललकारती नारी के अपने बोल, लोकगीत के माध्यम से कहते हैं, यदि तुम्हें इतना ही घमंड है कि मैं घर से बाहर सरोवर ,कुंये अथवा नदी पर जल भरने नही जाऊं तो फिर अपने ही घर के अंदर तुम कुंआ खुदवाओ । मुझे कोई शौक नही है कि भरी बरसात में मिट्टी के घड़े लेकर पानी भरने जाऊं ।

लोकगीत
“ऊपर बदर गहराये री
तरें गोरी पनियां को निकली
जाय जो कहियो उन राजा ससुर से
की अंगना मे कुईंयां खुदायें री
तुम्हारी बहू पनियां को निकली ।
ऊपर बदर गहराये….
जाय जो कहियो उन राजा जेठ से
कुंईयां में गिर्री डलवायें री
तुम्हारी बहू …..!
जाय जो कहियो उन राजा ननदोई से
रेशम की डोर मंगवाये री ..
तुम्हारी सलहज पनियां को निकली‌
जाय जो कहायो उनराजा देवर से
सोने के कलशा मंगवाये री
तुम्हारी भावज पनियां को निकली
जाय जो कहियो उन राजा पिया से
घर में कहरवा लगायें री
तुम्हारी धन्ना पनियांको निकली ।
ऊपर बदर गहराये री
तरें गोरी पनियां को निकलीं

इन लोकगीतों में जनमानस की आत्मा बसती है। जो सीधे से अपने मन की पीड़ा को नहीं कह पाती उसे लोकगीतों के माध्यम से कह देती है । भरी बरसात में कुंयें से पानी भरने जाना आसान नहीं वह भी मिट्टी के घड़े लेकर कच्ची पथरीली राहों पर फिसल गई तो क्या होगा ? पानी ,पनघट और पनिहारिन की ये व्यथा कथा है ।

परिवर्तिनी एकादशी:-
Jalvihar Ekadashi का दूसरा नाम परिवर्तनी एकादशी है। देवशयनी एकादशी के पश्चात शेष-शैय्या पर शयन कर रहे भगवान विष्णु जी आज के दिन करवट बदलते हैं । दाहिनी ओर से बाईं ओर ,उनके द्वारा इस परिवर्तन के कारण ही इस एकादशी का नाम भी परिवर्तनी एकादशी पड़ा ।

पद्मा एकादशी:-
इस‌ नाम के पीछे कहा जाता है कि कमल नयन विष्णु भगवान को पद्मावती लक्ष्मी बहुत प्रिय हैं और आज के दिन कमल के फूल से उनका पूजन करने से उन्हें विशेष प्रसन्नता मिलती है‌। आज के दिन कमल पुष्प को विशेष रूप से चढ़ा कर उनका पूजन किया जाता है । इस तरह हर नाम के पीछे उसका गूढ़ अर्थ छिपा होता है जिसे हमें जानना चाहिये ।
उषा सक्सेना

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।

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