Darsh Amavasya : चैत्र माह की अमावस्या का ही दूसरा नाम दर्श अमावस्या भी है। इस बार यह अमावस्या 29 मार्च शनिवार के दिन होने के कारण इसे शनिश्चरी अमावस्या भी कहते हैं। चैत्र माह माधव के नाम पर भगवान विष्णु को समर्पित है। संवत्सर के अंतिम दिन का दर्शन करना महत्वपूर्ण माना गया है इसी से इसका नाम दर्श अमावस्या पड़ा है। अमावस्या पितरों को समर्पित होती है। चंद्रमा के प्रकाश का सूर्य में विलीन हो जाना ही मन को अवसाद से ग्रसित करते हुये नकारात्मक सोच उत्पन्न करता है।
नकारात्क शक्ति के प्रभाव से बचाती है दर्श अमावस्या
नकारात्क शक्ति के प्रभाव से बचने के लिये इसे दर्श अमावस्या कहा गया है ।दर्श का अर्थ है दर्शन करना लेकिन किसका अपने अंतस् में छिपे हुये आत्म-तत्व का आत्म विश्लेषण करते हुये चिंतन कर अपनी गलतियों को सुधार कर नये संवत्सर के प्रवेश के समय एक नई सोच के साथ सकारात्मक ऊर्जा भरते हुये नये संकल्पों के साथ नवसृजन के पथ पर चलकर आगे बढ़ना यही इसका गूढ़ संदेश है।
एक माह में दो ग्रहण होते हैं अशुभ फलदाई
इस संवत्सर का यह अंतिम सूर्य ग्रहण है जो मीन राशि पर पहले से ही स्थित राहु ग्रह के कारण सूर्य और चंद्र दोनों पर ही उसका प्रभाव पड़ेगा। यह ग्रहण आज 29 मार्च 2025 को दोपहर 2 बजकर 47 मिनट पर लग रहा है जो कि भारत में दृश्य नहीं होने से भारत में इसका सूतक नहीं लगेगा। फिर भी खगोलीय ज्योतिषीय घटना होने के कारण *यत्पिंडे तत्ब्रह्माण्डे* की मान्यता के अनुसार जो ब्रह्माण्ड में है वही हमारे अंदर भी स्थित है। अत: कहीं न कहीं वह अपना प्रभाव तो छोड़ेगा ही। मानसिक रूप से मन को विचलित कर नकारात्मक सोच उत्पन्न कर सकता है। कुछ राशियों के लिये यह ग्रहण अच्छा भी है तो कुछ के लिये खराब भी। एक माह में दो ग्रहण का पड़ना अशुभ फलदायी ही होता है ।
दर्श अमावस्या देवताओं को अधिक प्रिय है क्यों कि इस अमावस्या के बाद ही घने अंधकार को चीरकर देवताओं की दैत्यों से रक्षा करने के लिये नवसंवत्सर के साथ ही नवरात्रि के नौ दिन देवी के नौ रूपों को दर्शाते हुये उनका अवतरण होगा। इसीलिये इसका नाम दर्श अमावस्या है। आईये हम सब भी नये संकल्पों के साथ अपने पुराने बुरे दिनों की स्मृतियों को भुलाकर आगे नवसृजन की ओर बढ़ें ।
उषा सक्सेना