Saturday, October 11, 2025
Home खबर टल्ली न्यूज़ ये नाइत्तेफाकियां! आवारा कुत्तों को आश्रय में भेजना जरूरी क्यों ?

ये नाइत्तेफाकियां! आवारा कुत्तों को आश्रय में भेजना जरूरी क्यों ?

Supreme court on stray dogs

by KhabarDesk
0 comment
Supreme court on stray dogs

Supreme court on stray dogs :  हम सभी को हृदय की गहराइयों से सर्वोच्च्य न्यायालय का धन्यवाद करना चाहता हूं जिसने आवारा कुत्तों को लेकर समाज में कम से कम एक विमर्श तो प्रारंभ कराया । बेशक दिल्ली एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में भेजने संबंधी उसका आदेश अभी प्रभावी नहीं हुआ है मगर इतनी उम्मीद तो बंधी ही है कि अब इस दिशा में देर सवेर गंभीर प्रयास होने लगभग तय ही हैं। मुझे नहीं मालूम कि मैं कुत्ता प्रेमी हूं अथवा नहीं मगर मुझे इतना पता है कि पिछले बीस सालों से मेरे द्वारा अपने घर में एक न एक कुत्ता अवश्य पाला गया है।

रवि अरोड़ा

मैं नहीं जानता कि ये आवारा कुत्ते मुझे कितने नापसंद हैं मगर मुझे यह जरूर मालूम है कि उनके भय से पिछले पांच सालों से मैं सैर पर नहीं जा पा रहा हूं। मैं यह भी बता देना जरूरी समझता हूं कि ऐसा कोई दिन नहीं गुजरा जब मेरे घर से गली के कुत्तों को खाना न दिया गया हो और शायद ऐसा भी कोई दिन मुझे याद नहीं, जिस दिन अपने घर के आगे उनके द्वारा की गई गंदगी ने मुझे गुस्सा न दिलाया हो । ये तमाम बातें आपसे साझा करने का अभिप्राय केवल यही है कि मैं यह स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा हूं कि मैं न तो अव्वल दर्जे का कुत्ता प्रेमी हूँ और न ही उनके खिलाफ किसी सख्त कार्रवाई के लिए मैं मरा जा रहा हूं । शायद यह स्पष्टीकरण देने से ही कुत्ता प्रेमी और कुत्तों के दुश्मन मेरी बातों को एक तरफा मानने से बचेंगे ।

कुत्ता प्रेमियों की इन तमाम बातों से कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि कुत्ते इंसान के साथ पिछले तीस से चालीस हजार सालों से हैं। अपने लाभ के लिए ही हम इंसानों ने उसे पालतू बनाया था और अब एक दम से अचानक यूं उससे संबंध विच्छेद नहीं कर सकते । युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग में एक कुत्ते के जाने वाली कहानी भी हम सबने पढ़ी है और कुत्ते की वफादारी और घरों से प्रतिदिन निकलने वाले बचे खुचे खाने के निपटान के तर्क से भी किसी को कोई इनकार नहीं है ।

देश में करोड़ों की तादाद में है आवारा कुत्ते

मगर फिर भी कोई तो ऐसी बात होगी कि इतनी सिफतों के बावजूद आज भी हम इंसान इन कुत्तों को पूरी तरह से अपना नहीं सके । क्या इसका एक मात्र कारण आवारा कुत्तों की तेजी से बढ़ती तादाद नहीं है ? एक सर्वेक्षण के अनुसार फिलवक्त देश में सवा पांच करोड़ आवारा कुत्ते हैं और अस्पतालों से पता चलता है कि रोजाना लगभग दस हजार लोगों को ये काटते हैं। एक अन्य आंकड़ा कहता है कि साल 2022 से 2024 के बीच डेढ़ करोड़ लोगों को इन कुत्तों ने काटा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में हर साल 18 से 20 हजार लोग कुत्तों के काटते से मरते हैं। दुनिया भर में रेबीज से मरने वालों में 36 फीसदी हम भारतीय ही होते हैं। क्या यह आंकड़े सामान्य हैं ? कुत्तों के प्रति प्रेम की तमाम दलीलों को स्वीकार कर लेने के बावजूद यह सवाल तो मन में आता ही है कि ये इंसानी आबादियां हमने अपने लिए बनाई हैं या आवारा कुत्तों के लिए ?

Supreme court on stray dogs

क्या यह सत्य नहीं कि ये कुत्ते, बंदर और कबूतर आज हमारी आबादियों के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। यदि सर्वोच्च्य न्यायालय ऐसा कहता कि सभी आवारा कुत्तों को मार दिया जाए तो यकीनन उसका विरोध होता मगर उन्हें आश्रय गृहों में भेजने के आदेश में तो कोई बुराई नहीं है। यह ठीक है कि दिल्ली एनसीआर में इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों को रखने के लिए आश्रय स्थल नहीं हैं, मगर देर सवेर तैयार तो किए ही जा सकते हैं। इतिहास गवाह है कि अदालती डंडा सिर पर हो तो सरकारें कुछ भी कर सकती हैं। और नहीं तो कम से कम कुत्तों की नसबंदी की अपनी क्षमता ही बढ़ा सकता है जो सालाना केवल साठ हजार की है जबकि सर्वोच्च्य न्यायालय के अनुसार इसे सालाना साढ़े चार लाख होनी चाहिए ।

भूखे प्यासे आवारा कुत्तों को देखकर यदि किसी का दिल पिघलता है तो यह स्वाभाविक ही है मगर किसी कुत्ते के काटने से इंसान की मौत पर भी तो ऐसे सहृदय व्यक्ति की आंखों में आंसू आने चाहिए । किसी मासूम बच्चे अथवा वृद्ध को कुत्तों के झुण्ड ने नोच नोच कर मार डाला, ऐसी खबरें पढ़कर कुत्ता प्रेमी भी तो भयभीत होने चाहिए। मैं यकीन से कह सकता हूं कि कुत्तों से परेशान लोग उनसे नफरत नहीं करते अपितु भयभीत होते हैं। उधर, कुत्ता प्रेमी भी इंसान के दुश्मन नहीं हैं। ये सब जो नाइत्तेफाकियां हैं, इसका कारण केवल और केवल कुत्तों की संख्या और इंसानी दुनिया के बीच संतुलन का अभाव ही है। यदि सर्वोच्च्य न्यायालय अब इन दोनों के बीच कोई संतुलन बनाना चाह रहा है तो मेरे खयाल से हरसूरत उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए।

Disclaimer  : इस लेख में व्यक्त सभी विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं।

You may also like

Leave a Comment

About Us

We’re a media company. We promise to tell you what’s new in the parts of modern life that matter. Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Ut elit tellus, luctus nec ullamcorper mattis, pulvinar dapibus leo. Sed consequat, leo eget bibendum sodales, augue velit.

@2022 – All Right Reserved. Designed and Developed byu00a0PenciDesign