Karvachauth Vrat Katha : पवित्र कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, चौथ माता को समर्पित है। चौथ माता देवी पार्वती का ही एक रूप है। करवा चौथ पर चौथ माता से अखंड सौभाग्यवती होने के लिये विवाहित महिलायें यह व्रत करते हुये देवी से अपने पति की लम्बी आयु का वरदान मांगती है।
करवा का अर्थ मिट्टी का वह पात्र होता है जिससे उपवास के बाद जल पीकर व्रत तोड़ा जाता है। निर्जला उपवास के बाद चंद्रदेव के निकलने पर उनकी पूजा करते हुये चलनी के मध्य मे जलता दीप रखकर अपने पति के मुख का दर्शन करती है । भगवान चंद्रदेव की किरणों में अमृत का वास होने से वह शीतलता प्रदान कर दिन भर के व्रत के ताप का हरण करती हैं । पति देव अपनी लम्बी आयु की प्रार्थना के फलस्वरूप पत्नी को अपने हाथ से करवा मिट्टी का वह पात्र छोटी मटकी जिसमें नल के आकार की छोटी सी टोंटी बनी होती है उसके द्वारा पत्नी को जल पिला कर उसकी प्यास बुझाता है ।
करवा वह पात्र है जिसमें पंचतत्वों का मिश्रण होने से वह सृष्टि का निराकार से साकार रूप में सृजन करता है ।
पृथ्वी तत्व के रूप में मिट्टी जिसमें जल तत्व और ब्रह्म का वास होता है उससे उसे गूंध कर चाक पर चढ़ा पात्र का आकार देने के बाद धूप में आकाश तत्व के सान्निध्य में रखकर वायु तत्व के द्वारा सुखाया जाता है । परिपक्व होकर सूख जाने के पश्चात आग के ताप से तपा कर निखारा जाता है । इतनी सारी प्रक्रिया के बाद ही उस करवा का निर्माण हो पाता है जिसके बिना करवाचौथ का कोई महत्व नहीं । जल पर ब्रह्म का ही रूप है जो जीव को जीवन प्रदान कर सरस बनाता है अपने प्रेम के द्वारा ।
सत्य तो यह है कि हम इन पर्व और त्यौहारों को परम्परा के रूप में मना कर अपने कर्तव्य की ” इतिश्री “कर लेते हैं लेकिन कभी उसके पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्य को समझने की चेष्टा नहीं करते। पति पत्नी के मध्य प्रेम को बढ़ाने वाला यह त्यौहार हमारी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है । शरद पूर्णिमा के बाद चंद्रमा की उदित होती बाल किरणें सोम वर्षा के माध्यम से शीतलता प्रदान कर शीत ऋतु के लिये तैयार करती हैं ।
पौराणिक कथा :-Karvachauth Vrat Katha
प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी । बेटी का नाम वीरावती था। वह अपने सभी भाईयों में सबसे छोटी थी इसलिये सभी भाई उससे बेहद प्यार करते । विवाह के बाद एक बार उसका करवाचौथ का अपने मायके में पड़ा । सभी भाभियों के साथ उसने भी करवा चौथ का निर्जला व्रत किया । दिन भर कुछ भी न खाने पीने से उसको रात होते ही कुछ कमजोरी महसूस हुई । उसके सभी भाई उससे बहुत प्रेम करते थे । अंत में छोटे भाई से न रहा गया और अपनी बहिन के प्रति प्रेम के कारण उसने गांव के बाहर वट वृक्ष पर चढ़ कर जलती हुई लालटेन टांग दी । जिसका दूर से लालिमा युक्त प्रकाश उगते चंद्र का भ्रम दे रहा था ।
आकर उसने बहिन से कहा देखो चंद्रमा निकल रहा है तुम ऊपर छत पर चढ़कर चंद्रमा को अर्घ्य दे दो । बहिन ने अपने भाई की बात मान कर ऐसा ही किया और जैसे ही उसने खाने के लिये पहला कौर लिया उस समय उसे छींक आ गई । दूसरे कौर में बाल निकल आया तीसरा कौर ग्रहण करते ही पति की मृत्यु का समाचार आ गया । वह रोती बिलखती ससुराल पहुंची । उसकी भाभियों ने उससे कहा तुम व्रत भंग हुआ है इसलिये ऐसा हुआ ।अब तुम चौथ माता की पूजा करते हुये एक साल का विधान ले लो । पति के शव को जलाने मत देना । चौथ माता प्रसन्न होकर तुम्हारा सुहाग लौटा देंगी ।
वीरावती ने ऐसा ही किया वह पति के शव के पास बैठी रही । उनके शरीर से उगे सेई के कांटे निकालती रही। जैसे ही करवाचौथ आई उसने व्रत किया ।
उसकी भाभियां उससे मिलने आईं तो उसने सबसे पहले बड़ी भाभी से कहा यम की सेई ले लो मेरा पिय वापिस कर दो । भाभी ने मना कर दिया ऐसे ही पांच भाभियों के बाद जब छठवीं भाभी से उसने कहा तो भाभी ने पहले तो मना किया फिर बाद में इसका उपाय सुझाते हुये कहा कि तुम्हारे छोटे भाई ने तुम्हारे साथ धोखा किया था इसलिये तुम जब छोटी आये तो उसे जाने मत देना उसके पास यह शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को जीवन दे देगी । ऐसा ही हुआ जब छोटी भाभी आई तो वीरा ने ऐसा ही किया जब वह जाने लगी तो वीरा उसके पैरों से लिपट गई कहने लगी “मेरी यम सुई लेकर मेरा पिया मुझे दे दो”। भाभी ने अपनी ननद पर दया करके अपनी छोटी अंगुली चीर कर उसके अमृत की बूंदें उसके पति के मुख पर डाल दीं ।
एक सुहागिन के आशीर्वाद से वीरा का पति जीवित हो गया । इधर उसके पति की यम की सुई लेने से मृत्यु होने लगी तो देवी ने यम के दूतों से कहा इसकी पत्नी ने मेरा व्रत किया है और मेरे व्रत के प्रभाव से ही उसने अपनी ननद के पति को अमृत वर्षा कर जीवित किया तुम इसके प्राण नहीं ले सकते । देवी चौथ माता के कहने पर यम के दूत वापिस चले गये । इस तरह अपने व्रत के प्रभाव से छोटी भाभी ने अपनी ननद के सुहाग को लौटाया । आज के दिन व्रत के पश्चात सभी सुहागिनें एक दूसरे को टीका लगा कर आशीर्वाद देती हैं ।
उषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।