Kartik Month : मन में प्रश्न उठता इस माह का नाम कार्तिक क्यों पड़ा जब कि यह माह पूर्ण पुरुष के रूप में विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है । जिसमें पूरे माह शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक सुबह होने के पूर्व ही तारों की छांव में महिलायें किसी पवित्र नदी या तालाब में कार्तिक स्नान करने के पश्चात सामूहिक रूप से ठाकुर जी की स्थापना करते हुये कथा वाचक से कथा सुन कर राधा जी की मनो व्यथा को कृष्ण के गीतों के माध्यम से सुनाती हैं। यह गीत कार्तिक माह के स्नान करने के लिये जाते और लौटकर आते समय गाये जाते थे । जैसे :-
छुटकारें लटें ठाड़ीं द्वारे
जिन जाओ दौड़ के गिरधारी
राधा की नारी के रूप में ही मनोव्यथा का वर्णन इन लोक गीतों मे किया गया है। कार्तिक माह (Kartik Month ) दक्षिणायन के साधना पथ का माह है । इसमें शीत ऋतु के पूर्व उसके लिये अपने शरीर को तप के माध्यम से शीतल जल में स्नान कर इस योग्य बनाया जाता है कि शीत ऋतु का उस पर अधिक प्रभाव न पड़े । इस समय अगहनियां फसलें भी खेतों में लहलहाती प्रकृति के माध्यम से स्वागत करती हैं। कार्तिक माह में पांच कार्य अवश्य किये जाते हैं
(1) ब्रह्म मुहूर्त में स्नान
(२) ठाकुर की पूजा और कार्तिक महात्म्य की कथा।
(३) तुलसी की पूजा
(४) भजन
(५) दीपदान
पूरे एक माह कार्तिक स्नान के पश्चात कार्तिक माह की पूर्णिमा को यह व्रत पूरे होते। कार्तिक माह सबसे पवित्र माह कहा गया है जिसमें प्रतिदिन ही कोई न कोई त्यौहार होता है। करवाचौथ ,अहोईअष्टमी ,आसमाई, रम्भा एकादशी,बच्छवास (गोवत्स द्वादशी ) दीपावली के पांच दिन का त्यौहार धनतेरस ,नरकचौदस , दीपावली, अन्नकूट ,भाईदूज , छठपूजा,आंवलानवमी ,एकादशी पंचबिकिया (भीष्म पंचक) , कार्तिक स्नान करने वालों के लिये यह पांच दिन कठिन व्रत के होते हैं। बैकुंठी चौदस और कार्तिक पूर्णिमा । इस समय सभी महिलाएं सखी रूप में एक साथ सारे भजन पूजन ,दीपदान आदि के कार्य करते हुये आपसी मेल जोल और सामंजस्य से सारे कार्य करती हैं।
कार्तिक नाम क्यों पड़ा :-
इस नाम के पीछे भी एक कथा है कि जब तारकासुर ने ब्रह्माजी को प्रसन्नकर शिवपुत्र से अपनी मृत्यु का वरदान मांगा था। उस समय शिव जी की पत्नी सती दक्ष यज्ञ में भस्मीभूत हो चुकी थीं । इधर तारक का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ रहा । देवताओं के द्वारा निर्देशित देवर्षि नारद के कहने पर सती के दूसरे रूप पार्वती ने शिव जी को पाने के लिये घोर तप किया । देवताओं ने कामदेव को तप भंग करने भेजा किंतु क्रोध वश शिव ने उसका दहन कर दिया बाद में देवताओं की प्रार्थना पर हिमवान की पुत्री पार्वती से विवाह किया। जिससे शिव पुत्र की उत्पत्ति हुई।
रति के शाप के कारण पार्वती मां नही बन सकती थी। ऐसी परिस्थिति में शिवपुत्र की उत्पत्ति संदिग्ध थी। शिवपुत्र के न होने पर तारकासुर की मृत्यु असंभव थी। ऐसी विकट परिस्थिति में देवताओं ने वायु देव के साथ अग्निदेव को उस गुफा में भेजा जहां शिव-पार्वती क्रीड़ा रत थे । अग्निदेव छिपकर शिव जी का वीर्य पात होते ही उसे लेकर भागे । वह इतना अधिक ज्वलनशील था कि अग्निदेव स्वयं जलने लगे। अत: उन्होंने उसे गंगा के शीतल जल में प्रवाहित कर दिया । गंगा भी उस तेज को अधिक समय तक सहन न कर सकी और उन्होंने उसे भूमि पर शरवन में छोड़ दिया। अब तक वह गंगा के गर्भ में रहकर पुत्र रूप धारण कर चुका था उस समय छै:कतिकायें गंगा में स्नान करने आईं तो उन्होंने उसे उठा लिया।
उनके रूप को देखकर उनके मन में वात्सल्य उमड़ा और उन्होंने उसे उठा लिया। तब शिवपुत्र ने छै मुख के रूप में अपने आपको परिवर्तित कर उन कृतिकाओं का स्तन पान कर उन्हें मातृत्व सुख प्रदान किया जिसके कारण उनका नाम कार्तिकेय पड़ा । वह बलिष्ठ हो गये बाद में देवताओं ने शिव पुत्र को युद्ध कला में पारंगत करने के लिये शिव जी को सौंपा । शिवपुत्र का जन्म और लालन पालन इस तरह गुप्त रूप से हुआ कि तारकासुर को पता ही नहीं चला ।अंत में देवताओं का सेनापति बनकर कार्तिकेय ने तारकासुर का वध इसी महीने में किया। जिसके कारण कार्तिकेय को सम्मानित करने के लिये इस माह का नाम भी उनके नाम पर कार्तिक पड़ा । यह कार्तिक माह का महात्म्य है। जिसके कारण यह माह सभी महीनों में सर्वोत्तम माना जाता है । इसका प्रत्येक दिन किसी न किसी को समर्पित है।
ऊँ क्लीं कृष्णाय नम:
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे ,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।
उषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं। इनमें दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।