Sunday, October 12, 2025
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नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में माता नव दुर्गा का चौथा रूप देवी कूष्मांडा

by KhabarDesk
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Navratri : नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में माता नव दुर्गा का चौथा रूप देवी कूष्मांडा का होता है।
सुरा संपूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव ना
दधाना हस्तापद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।

माता कूष्मांडा ही वह आदिशक्ति हैं, जिसने इस संसार को विस्तार दिया।  माता कूष्मांडा देवी में ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने की शक्ति उनके उदर में अण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक व्याप्त है। इनके पूजन से बुद्धि का विकास एवं निर्णय लेने की क्षमता आती है।  अपने मंद-मंद स्मित हास के द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कूष्माण्डा कहते हैं।

कूष्मांडा का अर्थ कुम्हड़ा या बिजौरा भी होता  है। मां के गर्भ में सृजन के बीज हैं। हमारे शरीर के सात चक्रों में माँ का स्थान अनाहत् चक्र में है जो संकल्पना का शाश्वत चक्र है । इनकी आराधना से साधक को आयु बल तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।  प्रारम्भ में सृष्टि का अस्तित्व न होने से चारों ओर केवल अंधकार ही अंधकार व्याप्त था। उस अंधकार के मध्य से ही ऊर्जा के स्त्रोत शक्ति के प्रकाशपुंज गोले के रूप में उनका अवतरण हुआ।  जिससे चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल गया । इसीलिये इनका निवास सूर्य मंडल के भीतरी लोक में माना जाता है। नारी रूप में अवतरित होकर सृष्टि के विस्तार के लिये त्रिगुणात्मक प्रकृति के रूप में बांई आँख से तेज पुंज के रूप में सर्वप्रथम तमो गुणी महाकाली का जन्म हुआ। मध्य के नेत्र से रजोगुणी महालक्ष्मी और दाहिने नेत्र से सतोगुणी सरस्वती प्रकट हुई। देवी के आदेश पर तमोगुणी महाकाली ने अपने तन से नर-नारी का जोड़ा उत्पन्न किया। नर पांच सिर एवं दस हाथ वाले तमोगुणी शिव हुये। नारी एक सिर एवं चार हाथ वाली सरस्वती कहलाई।  तम +सत , तमोगुणी सदा ही सत की ओर ही आकर्षित होता है । रजोगुणी महालक्ष्मी ने देवी के आदेश पर नर-नारी का जोड़ा उत्पन्न किया। नर के चार सिर एवं चार हाथ नारी का एक सिर चार हाथ। नर का नाम ब्रह्मा और नारी लक्ष्मी।

सतोगुण सदा रज की ओर आकर्षित होता है वह भोग विलास सुख ऐश्वर्य चाहता है। देवी सरस्वती ने अपने तन से नर नारी का जोड़ा नर के एक सिर चार  हाथ एवं नारी के एक सिर चार हाथ नर का नाम विष्णु और नारी शक्ति रूप काली । इस तरह शिव को पत्नी रूप में शक्ति मिली ,ब्रह्मा को सरस्वती एवं विष्णु को लक्ष्मी प्राप्त हुई । इनको इनके गुण के अनुरूप कार्य सौंप कर देवी ने स्वयं एक प्रकाश पुंज शक्ति एवं ऊर्जा में प्रवेश किया जो सभी की आंतरिक शक्ति है।

देवी कूष्मांडा का उत्तरप्रदेश के कानपुर के घाटमपुर कस्बें में एक मात्र मंदिर है। जहां पर नवरात्रि में मेला लगता है।  कहते हैं माँ की पूजा अर्चना के बाद मां के नेत्रों के जल को अपनी आंखों में लगाने से दिव्य ज्योति प्राप्त होती है । माता कूष्मांडा सभी की मन्नत और मुरादें पूरी करती हैं ।
या देवी सर्वभूतेषु कूष्मांडा रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
जै माता कूष्मांडा की विश्व का कल्याण करें।
ऊषा सक्सेना

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