Chaitra Navratri 2025: सृष्टि के सृजन का प्रथम दिवस तब सृष्टि की संरचना करते हुये सृजन के देवता ब्रह्मा जी ने चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही इस ब्रह्माण्ड की संरचना का प्रारम्भ किया था। हिन्दू सनातन धर्म में इसी लिये इस दिन का विशेष महत्व है और नये संवत्सर के प्रथय दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा ,सिंधी समाज इसे चेट्टी चाँद और आंध्रप्रदेश में इसे युगादि के रूप में मनाया जाता है। इस समय विक्रम संवत् 2081 के अंत के पश्चात रविवार के दिन रेवती नक्षत्र में 2082 के कालयुक्त संवत्सर का पदार्पण है। जिसके राजा स्वयं सूर्यदेव हैं और मंंत्री भी ।
Chaitra Navratri माता शैलपुत्री नवदुर्गा
माता के नौरूपों के विषय में कहा जाता है कि :-
*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्माण्डे चतुर्थकं ।
पंचमं स्कंदमातेति ,षष्ठ कात्यायनी,
सप्तम कालरात्रेति महागौरीति चाष्टमंं ।
नवमं सिद्धिदात्री च इति नौदुर्गा प्रकीर्तित: ,
उक्तानियेतानि नामानि ब्राह्मणैव महामना ।।
मन में जिज्ञासा जगाता एक प्रश्न मन को उद्वेलित करता क्या माता शैलपुत्री यहां पर केवल पर्वतराज हिमालय की ही पुत्री हैं। सती के पुनर्जन्म रूप जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति महादेव को न बुलाये जाने पर उस अपमान से क्रोधित होकर उनके यज्ञ को विध्वंस करने के लिये उसी यज्ञ में अपनी आहुति देकर प्राण त्याग दिये थे।
उनके मन में महादेव के प्रति प्रेम था जिसके वशीभूत होकर उन्होंने पुन: उन्हें पति रूप में पाने के लिये हिमवान और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया या इसके पीछे छिपा कुछ अन्य रहस्य भी है जिसके लिये ही यह आवरण डालकर इसे आवृत किया गया। दक्ष पुत्री देवी सती हों या हिमवान पुत्री शैलजा दोनों ही आदि पराशक्ति के ही रूप हैं। यह आदिशक्ति ही ब्रह्मा ,विष्णु और शिव की वह प्रच्छन्न शक्ति हैं जिसके द्वारा संचालित होकर वह देवी के द्वारा निर्धारित कार्य करते हैं। वह स्वयं मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री हैं जहां से जागृत होकर वह ऊपर की ओर यात्रा करती हुई सभी चक्रों को पार कर सहस्रार चक्र तक पहुंचती है। अपने पिता से लेकर पति तक की उनकी यह यात्रा जागृत शक्ति शिव की ओर बढ़ती है। शिव जो शक्ति के विना शव हैं।
आदि शक्ति शैल पुत्री का यह प्रथम कदम मूलाधार चक्र से प्रारम्भ होता है यह हमारे शरीर में मूलाधार में सुप्त अवस्था में सोई कुंडलिनी के योग के माध्यम से जागृत करने का प्रयास है। इसलिये प्रथम चरण में योगी का योग साधना के समय अपना सारा ध्यान मूलाधार पर ही केन्द्रित होता है। यह आध्यात्मिक अनुशासन का प्रथम केन्द्र बिन्दु है। वस्तुत: यहीं से ही योग साधना शुरू होतीहै। यौगिक क्रिया के माध्यम से इस जड़ देह में हमें उस शक्ति को जाग्रत करने के लिये शैलजा बनना होगा । हमे शैलपुत्री के रूप में पहले उसे अपने अंतस् में उतर कर गहराई से खोजना होगा। जब तक उसे नहीं खोजते मूलाधार चक्र सुप्त ही रहेगा। सत्य तो यह है कि ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हमारे अवचेतन में सुप्तावस्था में सोई रहती हैं। हम उन्हें बाह्य भोग लिप्सा में लिप्त रहकर जानना ही नही चाहते। देवी के इन नौ रूपों के माध्यम से हम अपनी यह यात्रा पूर्ण कर उस बिन्दु तक पहुंच सकते हैं जहां पहुंचने के पश्चात कुछ भी शेष नही रहता।
यह आत्मा की खोज और उसको पहचानने का प्रथम चरण है। आत्मशक्ति ऊर्जा का चैतन्य रूप हर मनुष्य में यह दिव्य शक्ति निहित होती है जिसे जाने बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते । लाल रंग, पृथ्वी तत्व,जिसमें सामंजस्य का गुण और ध्राण(सूंघना ) की भेद विशेषतायें हैं ।
Chaitra Navratri शैलपुत्री:-
योग के रूप में यदि यह हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के रूप में स्थित हैं तो भौतिक बाह्य रूप से वह पर्वतराज हिमालय की पार्वती, शैलपुत्री हैं। जिन्होंने दक्षपुत्री सती की देह का त्याग कर पुन:जन्म लिया अपनी यात्रा को पूर्ण करने के लिये वह इस सांसारिक अस्तित्व का सार हैं। प्रथम दिवस घट स्थापना से प्रारम्भ होता है। घट जो की नारी का प्रतीक है। नारी के अस्तित्व के विना सृष्टि का सृजन संभव नही। जवारों के लिये मिट्टी का पात्र और मिट्टी के उस पात्र में ही माटी की तीन परतें बिछाकर उसमें नवधान्य के बीज बोये जाते हैं जिसको पवित्र जल से छींटकर सींच दिया जाता है। पूजा के स्थल में रखे हुये नमी पाकर यह अंकुरित होने लगते हैं और नौ दिन में पूर्ण हो जाते हैं। यह नारी की प्रकृति और उसकी सृजन के बीज की प्रक्रिया के द्योतक हैं जो माता के गर्भ में पल कर नया जन्म लेता है।
देवी के रूपों का वर्णन
देवी ने भौतिक रूप से पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिव को पुनः प्राप्त करने के लिये ब्रह्म चारिणी क रूप धारण कर भयंकर तप किया । जो यह शिक्षा दे बतलाता है कि यदि आपको अपने जीवन मे कुछ भी प्राप्त करना है तो उसके लिये धैर्य धारण करते हुये तप करना पड़ेगा तभी आप अपने अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं ।
देवी के प्रथम रूप को नमन करते हुये :-
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम:प्रकृत्यै भद्रायै नियता प्रणता स्मृताम्।।
ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमो नम:।
उषा सक्सेना