Kartik Maas : भारतीय वैदिक संस्कृति में यदि एक ओर श्रावण माह शिव जी को समर्पित है तो दूसरी ओर कार्तिक माह श्री कृष्ण की भक्ति को । इसमें आज भी गांवों में तारों की छांव में महिलायें सभी एक दूसरे को पुकारती साथ मिलकर श्री कृष्ण की भक्ति के गीत गाते हुये किसी नदी, तालाब या कुएं पर जाकर सामूहिक स्नान करने के पश्चात किसी एक स्थान पर अपने ठाकुर श्री कृष्ण का प्रतिरूप बनाकर उसकी पूजा कर भक्ति भाव से श्रीकृष्ण की कथा का श्रवण कर पूरे माह व्रत करते हुये केवल एक समय एक अन्न का सात्विकभोजन करती हैं।
प्रकृति से जुड़ने का मास है कार्तिक का महीना
शरद-ऋतु में शारदीय पूर्णिमा के बाद शरद ऋतु के दूसरे पवित्र माह कार्तिक का आगमन होता है । जिसके नाम के पीछे ही छिपा उसका रहस्य, शिवपुत्र कुमार कार्तिकेय के नाम पर इस माह का नाम कार्तिक पड़ा है । कृतिका नक्षत्र से प्रारम्भ होने से छै: कृतिकाओं ने जिनका पालन किया उनके ही नाम को समर्पित कर दिया कार्तिक नाम ।
शरद ऋतु का अंतिम माह और शीत ऋतु का प्रारम्भ, उसके पूर्व शारीरिक एवं मानसिक रूप से उसी के लिये आत्म शक्ति को भक्ति के द्वारा जाग्रत करने के लिये पावन कार्तिक मास में भक्ति भावना के साथ सभी क्रियाएं होती है।
कार्तिक स्नान का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात कामदेव का दर्प हरण करने के लिये श्रीकृष्ण ने बृज की सभी गोपियों के साथ यमुना तट पर मुरली की मधुर तान पर नृत्य किया था। जब कृष्ण ने सारी रात रासमंडल किया और कामदेव हार गये थे । तब गोपियों के द्वारा पति रूप में पाने के लिये रात्रि का अंतिम और भोर के प्रथम प्रहर के संधि काल में स्नान करने के बाद तट पर ही उनका पूजन और जप तप किया गया जो कार्तिक पूर्णिमा को पूर्ण होता है । भारतीय संस्कृति के रूप में आज भी कार्तिक स्नान की परम्परा हिन्दू धर्म में मनाई जाती है । महिलायें भोर की लालिमा के पूर्व ही तारों की छांव में एक दूसरे को बुलाती कार्तिक स्नान के गीत गाती किसी नदी सरोवर या कुँये पर सामूहिक स्नान करने के पश्चात किसी नियत स्थान पर ठाकुर जी की स्थापना कर उसका पूजन करते हुये गीत गाती हैं। ठाकुर के रूप में श्री कृष्ण ही रहते हैं । कई स्थानों पर इस समय श्री कृष्ण राधा और गोपियों के साथ उनके रास नृत्य का भी आयोजन होता है ।
कार्तिक मास में होता है तुलसी विवाह
कार्तिक मास में तुलसी रोपण और उनके पूजन का भी नियम है, नित्य रात्रि को तुलसी चौबारे पर दीप जलाने की प्रथा है । कार्तिक पूर्णिमा को ही तुलसी का विवाह उनके साथ उनकी विदाई का दिन होता है । यह मास हर्षोल्लास का माह है जो मानव में देवत्व को जगाता है।
चातुर्मास का अंतिम महीना
इस मास में श्री विष्णु का स्वयं योगनिद्रा से जागरण और सृष्टि के पालन हार होने के कारण लक्ष्मी जी के साथ धरा पर विचरण होता है । लक्ष्मी जी का धरा पर धन धान्य की वर्षा कर सभी के अर्थोपार्जन के साधन जुटाना अपने आप में महत्वपूर्ण है । यह माह दान, धर्म और धन की अभिवृद्धि का भी माह है। कार्तिक मास में पवित्रता का सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है ।
कार्तिक स्नान करने वाली महिलायें जिन्हें कतकारी कहा जाता है वह केवल एक समय ही भोजन करती है वह भी एक अन्न का । वे लहसुन प्याज के साथ ही दलहन का भी त्याग करती हैं। इस महीने दूध, घी,स्निगध चीजें एवं फल मेवा गुड़ आदि ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में अधिक खाये जाते हैं। कार्तिक मास में स्नान के साथ साख्य भाव से दान एवं दीप दान का अधिक महत्व हैं। इन व्रत उपवास सामूहिक स्नान और पूजन के माध्यम से नारी शक्ति अपने सुख दुख को एक दूसरे के साथ आप बीती कहते हुये बांँट कर उनके समाधान भी खोज लेती हैं । इस तरह से समूह के रूप में सामूहिक प्रार्थना में जो शक्ति है वह एकाकी नही । सनातन हिन्दू संस्कृति का मूल आधार ही समाजवाद है, व्यक्ति वाद नहीं । जबकि दूसरी ओर पाश्चात्य संस्कृति व्यक्ति वाद पर आधारित है । आज हम अपनी जड़ों से उखड़ गये हैं। अब नहीं जानते कार्तिक स्नान का महत्व और तुलसी पूजा । इसीलिये शारीरिक और मानसिक दोनों रोग हमें किसी न किसी रूप में घेरे रहते हैं। कार्तिक मास प्रकृति के सान्निध्य में रहने का माह है जहां से प्रकृति के माध्यम से ही हम अपने आप को शीत ऋतु के आगमन के लिये तैयार करते हैं।
।।श्रीकृष्णं वंदे जगद्गुरु ।।
ऊंँ नमो भगवते वासुदेवाय।।
उषा सक्सेना –
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।