Saturday, October 11, 2025
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तेरे जैसा यार कहां …. वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र कुमार राय ने याद किया दिवंगत पत्रकार वीरेंद्र सेंगर को

Virendra Sengar Condolence Meet

by KhabarDesk
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Virendra Sengar Condolence Meet

Virendra Sengar Condolence Meet :  वीरेंद्र सेंगर वहां चले गये जहां से कोई कभी लौट कर नहीं आता। लेकिन वे लोगों की यादों में, उनके दिलों में उनकी आखिरी सांस तक बसे रहेंगे। वीरेंद्र सेंगर मेहनती, ईमानदार, निर्भीक और जन पक्षधर पत्रकार थे। पिछले करीब पचास सालों से वे पत्रकारिता में सक्रिय थे। पिछले कुछ सालों से वे व्यंग्य में भी हाथ आजमा रहे थे। लेकिन उनके व्यंग्य भी साहित्यिक से ज्यादा राजनीतिक ही होते थे।

अमरेंद्र कुमार राय

वीरेंद्र सेंगर जो कुछ भी थे अपनी प्रतिभा की वजह से थे। उन्हें कभी कोई बड़ा मंच नहीं मिला। लेकिन उन्होंने जहां भी काम किया अपनी पहचान बनाई और छाप छोड़ी। उनकी मेहनत, लगन, प्रतिभा और उनकी रिपोर्टों को देखकर बड़े संस्थानों में काम करने वाले लोग भी उनकी प्रशंसा करने से अपने आप को रोक नहीं पाते थे। जहां तक मुझे याद है उन्होंने लखनऊ में शान ए सहारा के साथ विधिवत पत्रकारिता की शुरुआत की थी। चौथी दुनिया और संडे मेल, अमर उजाला में भी उन्होंने काम किया। बाकी देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए वे समय-समय पर काम करते रहे।

कई बार मुझे लगता है कि वीरेंद्र सेंगर की तुलना कुछ मामलों में महाभारत के दो पात्रों कर्ण और कृष्ण से की जा सकती है। कर्ण भी इन्द्रप्रस्थ के सिंहासन से दूर अपनी प्रतिभा और योग्यता के बल पर अपने धनुर्धर होने का लोहा मनवाते रहे। हालांकि उन्हें बाद में इंद्रप्रस्थ के साथ जुड़ने का मौका मिल गया था। लेकिन वीरेंद्र सेंगर को वह अवसर कभी नहीं मिला। वे मुख्य धारा की पत्रकारिता से दूर चौथी दुनिया और संडे मेल के जरिये ही अपना लोहा मनवाते रहे। कृष्ण से उनकी तुलना इस रूप में की जा सकती है कि जैसे जहां कहीं संघर्ष होता था कृष्ण वहां मौजूद होते थे। इसी तरह जहां कहीं आंदोलन या गतिविधियां चल रही होतीं वीरेंद्र सेंगर वहां की रिपोर्ट कर रहे होते थे। उनका एक पांव अपने घर में होता था और दूसरा पांव रिपोर्टिंग के लिए बाहर। शान ए सहारा के दिनों में वे अक्सर बाहर जाया करते थे। शान ए सहारा के लिए उन्होंने एक से एक अच्छी और जमीनी रिपोर्ट की। चौथी दुनिया में तो उन्होंने मलियाना कांड की ऐसी शानदार रिपोर्टिंग की कि उस के लिए उन्हें आज तक याद किया जाता है।

मेरठ में 1987 में दंगा भड़का था। वहां मलियाना में पीएसी के जवानों ने मुसलमानों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी। उनकी लाशें हिंडन में बहती हुईं गाजियाबाद तक पहुंच गई थीं। किसी बड़े अखबार को इसकी भनक तक नहीं लगी। एक के संवाददाता को पता चला तो उसके संस्थान ने रिपोर्ट को छापने से ही मना कर दिया। वीरेंद्र सेंगर ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। खूब मेहनत की। जान जोखिम में डालकर शानदार रिपोर्टिंग की। रिपोर्ट छपते ही पूरे देश में तहलका मच गया। बाद में सभी अखबारों को उस खबर को छापना पड़ा। खबर से तत्कालीन यूपी सरकार बहुत नाराज हुई और एक प्रमुख अधिकारी को खबर लीक होने के लिए जिम्मेदार मानते हुए तुरंत उसे पद से हटा दिया गया था।

सेंगर साहब मूलत : वामपंथी विचारों वाले थे। लेकिन उनके संपर्कों का दायरा बहुत व्यापक था। समाजवादियों से लेकर कांग्रेसियों और भाजपाइयों तक में उनकी गहरी पैठ थी। सब लोग उनकी निष्पक्षता से प्रभावित थे इसलिए कभी किसी को उनके साथ बैठने, बात करने, खबरें देने में संकोच नहीं हुआ। वे जानते थे कि सेंगर खबरों के साथ न्याय करेंगे। वे एक फोन पर सेंगर साहब को समय देने और मिलने को तैयार हो जाते थे। चाहे वे हरिकिशन सिंह सुरजीत हों, मुलायम सिंह यादव हों, वीर बहादुर सिंह हों या लालकृष्ण आडवाणी या फिर अटल बिहारी वाजपेयी हों। बाकी पार्टियों के नेताओं का भी यही हाल था। लेकिन सेंगर साहब ने अपने संबंधों का फायदा कभी निजी कार्यों के लिए नहीं उठाया। बल्कि समय-समय पर सत्ताधारी दल के कई नेताओं ने कहा भी कि सेंगर साहब मैं फोन कर देता हूं आप अमुक जगह पर ज्वाइन कर लीजिये। लेकिन सेंगर साहब कभी इसके लिए तैयार नहीं हुए। बीजेपी के कार्यकाल में भी उनके एक मित्र ने उन्हें लोक सभा टीवी ज्वाइन करने का ऑफर दिया। तय भी हो गया लेकिन सेंगर साहब ने ज्वाइन करने से मना कर दिया। उनके तमाम मित्र इस बात को जानते हैं। उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।

सेंगर साहब लिखने के साथ ही अपनी बात मजबूती से रखते भी थे। सामने वाला कोई भी हो अगर उसके विचारों से वे सहमत नहीं हैं तो उसके सामने ही कह देते थे। लेकिन वे किसी से झगड़ते नहीं थे। उनके इसी गुण के कारण उनके संबंध किसी से खराब नहीं होते थे। इस दौर में भी जबकि कटुता बहुत बढ़ चुकी है, विचारों की दूरी निजी संबंधों तक पर असर डालने लगी है तो भी उनके रिश्ते सबसे पहले जैसे ही बने हुए थे। बहुत दूरी बढ़ी तो उससे मिलना-जुलना कम कर दिया। बातचीत कम कर दी, ताकि रिश्ते बचे रहें।

कई लोग होते हैं कि आगे बढ़ते जाते हैं पीछे के निशान मिटाते जाते हैं। लेकिन सेंगर साहब निशान कायम रखकर आगे बढ़ने वाले व्यक्ति थे। जो लोग उनके स्कूल के समय से जुड़े हुए थे वे आज भी उनके अभिन्न मित्र हैं। शान ए सहारा के साथी हों या फिर आखिर में जुड़े डीएलए के साथी सब उनके साथ अभी तक जुड़े हुए थे। यही वजह है कि उनकी अंतिम यात्रा में वे सब लोग उनके साथ शामिल हुए। अनिल शुक्ला उनके करीबी मित्र थे। सेंगर की मौत की खबर सुनकर उनका फोन आया। अनिल शुक्ला संडे मेल में उनके साथ थे। किडनी की बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। फिलहाल आगरा में रहते हैं। कुछ दिनों पहले अपने घर के आंगन में ही गिर पड़े थे। चलने-फिरने में दिक्कत है। सेंगर की अंतिम यात्रा में न शामिल होने का दुख उन्हें खाये जा रहा है। कह रहे थे सेंगर एक मात्र ऐसा मित्र था जो मेरे दोनों बच्चों की शादी में रहा। हर दुख-सुख में साथ रहा। लेकिन मैं उसकी अंतिम यात्रा में भी भाग नहीं ले पा रहा। चौथी दुनिया में उनके साथ काम करने वाले अभय शर्मा तो फफक कर रो ही पड़े। इस समय वो आगरा के बाह में कहीं हैं। कहने लगे अब हिम्मत जवाब दे गई है।

सेंगर साहब आजकल देहरादून से निकलने वाली पत्रिका “चाणक्य मंत्र” से जुड़े हुए थे। उसके लिए वे नियमित रूप से लिख रहे थे। इसके साथ ही वे सोशल मीडिया खासकर फेसबुक पर सक्रिय थे। हर मुद्दे पर अपनी राय रखते थे और बेहतर काम करने वालों को प्रोत्साहित करते थे। अपनी मृत्यु से एक दिन पहले ही डायबिटिक रोगियों को लूटने वाली एक कंपनी के बारे में विस्तार से लिखा था। जिस दिन उन्हें हॉर्ट अटैक आया उस सुबह भी उन्होंने लिखा था कि सुबह से ही कुछ अनजान नंबरों से फोन आ रहे हैं और कहा जा रहा है कि क्यों हमारा धंधा चौपट करने पर तुले हुए हो। लाख दो लाख या और ज्यादा लेकर चुप हो जाओ। वैसे भी हमारा कुछ बिगाड़ नहीं पाओगे। हमारे तार बहुत ऊपर तक जुड़े हुए हैं। उन्होंने व्यंग्य में अपने साथियों से पूछा भी था कि कितने में बिकूं ? लाख में या दो लाख में ? या और ज्यादा ? कुछ लोग ये भी मान रहे हैं कि जिस तरह से उस कंपनी की ओर से फोन आ रहे थे उससे एक संभावना ये भी बनती है कि ऊपर से सेंगर साहब भले ही व्यंग्य करते नजर आ रहे हों लेकिन उससे उनको तनाव हुआ होगा और उसकी परिणति दिल के दौरे के रूप में सामने आई।

सेंगर साहब की कमी उनके मित्रों और परिचितों को खल रही है। कोरोना से थोड़ा पहले से ही सेंगर साहब नोएडा के साथ ही नैनीताल में नौकुचिया ताल के पास एक गांव में घर बनाकर रहने लगे थे। उन्हीं की तरह कुछ और लोग भी उसी इलाके में जाकर रह रहे हैं। ये लोग वहां आपस में अक्सर मिलते जुलते भी रहते हैं। अपनी मृत्यु से दो तीन रोज पहले ही सेंगर साहब, शैलेंद्र प्रताप सिंह ( पूर्व आईपीएस ) और विमल ( पूर्व डीएम, गाजियाबाद ) विमल के फॉर्म हाउस पर कई घंटे जमे। वहीं खाना खाया गया और चाय पी गई। अब वे सब लोग उनकी कमी शिद्दत से महसूस कर रहे हैं।

सेंगर साहब का यूं जाना सबको खल रहा है। मुझे भी। पर किया क्या जा सकता है। यह सब सहना पड़ेगा। मन को समझाना पड़ेगा। कितना हू कहो कि जाने वाले हो सके तो लौट के आना पर जानते सभी हैं कि “जो जो गये बहुरि नहीं आये, पठवत नहीं संदेश।“ अलविदा सेंगर साहब। अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

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