Navratri Ashtami Puja : नवरात्रि का अष्टम दिवस महागौरी का अवतरण :-
या देवी सर्वभूतेषु महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नौदुर्गा शक्ति की अवधारिणी माता पार्वती के ही सारे रूप हैं । तप के बल पर शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये उनका तन काला पड़ गया। महिषासुरमर्दिनी, चंड -मुंड विनाशिनी , रक्त बीज का संहार करने के लिये खप्पर धारिणी अंत में शुम्भ निशुम्भ को मारने वाली माता काली के रूप को धारण करने वाली देवी काली अपने पति शिव जी के पास आईं। उनके इस वीभत्स रूप को देख कर शिव जी हास परिहास करते हुये समय असमय उन्हें काली कह कर चिढ़ाते । एक दिन खीज़ कर देवी यह कहते हुये कि अब मैं उज्वल गौर वर्ण वाली गौरी बन कर ही आपके पास आऊंगी कहती हुई अपने पिता हिमवान के पास चली गईं । वहां पहुंच कर वह काया-कल्प करने वाले गंधर्वों के पास गईं ।
गंधर्वों ने देवी की इच्छा पूर्ण करते हुये उनको अनेक प्रकार की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से जड़ी बूटियों के लेपन और मर्दन के पश्चात उन्हें शीतल जल के मानसरोवर में स्नान करवाया । इसके बाद देवी तपस्या करतीं हैं । इस प्रकार से तपस्या, कठिन उपचार एवं मानसरोवर के शीतल जल में स्नान करने से उनका रंग काले के स्थान पर उज्जवल गौर वर्ण का हो गया । गौरवर्ण के साथ गौरी बन कर जब वह शिव जी के पास लौट कर आईं तो शिवजी ने उन्हें महागौरी कहते हुये स्वागत कर अपने पार्श्व में स्थान दिया ।
Navratri Ashtami Puja देवी का विद्युत कांतिवान वर्ण हो जाने से ही उनका नाम महागौरी हुआ
इस तरह देवी का विद्युत कांतिवान वर्ण हो जाने से ही उनका नाम महागौरी हुआ । महागौरी का यह देवी रूप अमोघ फलदायिनी और भक्तों के पापों का हरण करने वाली हैं । इनकी उपासना से पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं । गौरवर्ण के कारण इनकी उपमा शंख ,चंद्र और कुंद पुष्प से की जाती है । वृषभ वाहिनी चार भुजाओं वाली श्वेत दिव्य वस्त्र धारिणी श्वेत आभूषण पहने देवी का दिव्य स्वरूप चेहरे पर अद्भुत शांति लिये हैं । देवी की चारभुजाओं में उनका दाहिने ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे के हाथ में त्रिशूल है।बाईं ओर के ऊपरी हाथ में डमरू तथा नीचे का हाथ वरद मुद्रा में है । इनकी कृपा से साधक को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं ।
Navratri Ashtami Puja सूक्ष्म शरीर की बुराइयों का वध आवश्यक है
शाक्त मतानुसार सात चक्रों का भेदन कर स्थूल शरीर को पुष्ट करने हेतु दैहिक शक्ति प्राप्त होती है । दूसरी ओर सूक्ष्म शरीर की बुराईयां दैहिक शरीर की शक्ति को नष्ट कर देती है अत:उनका वध आवश्यक है। तभी देवी अपने अष्टम रूप महागौरी बन कर शिव की अर्द्धांगिनी बन पायेंगी।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
उषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।