Gopashtami : गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण को देवराज इन्द्र पर विजय मिली थी। उनके साथ ही उनके गोप ग्वालों को समर्पित यह दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
श्री कृष्ण ने कुपित इन्द्र से बचाया था गोकुल वासियों को
देवराराज इन्द्र गोकुल वासियों के गोवर्धन पूजा से क्रोधित हो गए थे , गोकुल वासियों को इसका दंड देने के लिए देवराज इन्द्र ने बिना रुके लगातार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक निरंतर घनघोर बारिश कर दी तब श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों की रक्षा के लिये अपने गोप साथियों के साथ गोवर्धन पर्वत को लाठियों के सहारे उठा कर उन सभी की रक्षा की। अपनी पूजा न होने के कारण रुष्ट हुये देवराज इन्द्र अपनी संपूर्ण शक्ति लगा कर भी उन्हें नही हरा पाये तो स्वयं हार कर अपनी पराजय स्वीकार करते हुये उनसे बदले में अपने एवं कुन्ती पुत्र अर्जुन की सहायता का वचन लेकर चले गये जिस वचन को श्री कृष्ण ने अपने अंतिम समय तक हर समय उनका सखा बनकर निभाया। वह दिन सप्तमी का था जिस दिन गोकुल वासियों को देवराज इन्द्र के क्रोध से श्रीकृष्ण के कारण मुक्ति मिली। बरसात के बंद होते ही सभी उस पीड़ा से मुक्ति पाकर सभी हर्षोल्लास मना रहे थे।
कैसे हुआ श्री कृष्ण का नाम गोविन्द
दूसरे दिन गोपाष्टमी को स्वयं कामधेनू एवं उनकी पुत्री सुरभि के साथ सभी गायों ने मिल कर श्रीकृष्ण एवं उनके साथी गोप ग्वालों का अपनी दुग्ध धारा से उन सभी का अभिषेक किया। जिसके कारण ही श्रीकृष्ण का नाम गोपाल के साथ ही गोविन्द हुआ। बाद में सभी गोप ग्वालों ने अपनी गायों को अच्छे से नहला कर सजाते हुये उनके साथ नृत्य करते हुये हर्षोल्लास से उत्सव मनाया।
गोपाष्टमी :-
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की सप्तमी को स्वयं देवराज इन्द्र ने पराजय स्वीकार करते हुये श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी हार मान ली। अन्नकूट गोवर्धन पूजा के समय से लेकर अब तक उनके कोपभाजन का शिकार हुये सभी गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले गिरिधारी के साथ सभी की सामूहिक एकता ने उनकी रक्षा की थी। जिसके समक्ष निरंतर छै: दिन तक अपने मेघों द्वारा प्रचंड वायु के साथ झकझोरते हुये मूसलाधार वर्षा करने के बाद भी जब वह उनको नहीं हरा सके तो स्वयं ही हार मान ली। वर्षा समाप्त होने पर सभी गोप ग्वाले अपनी गायों के साथ गोवर्धन पर्वत से उतर कर अपने अपने घरों में आ गये।
दूसरे ही दिन तो गोपाष्टमी थी। गोपाष्टमी गोकुल वासियों के लिये एक बहुत बड़ा उत्सव है। जिसमें पांच वर्ष से ऊपर की आयु के बालकों को गोपाल के रूप में सजा-संवार कर तैयार किया जाता है। रात्रि के अंतिम प्रहर में ही माता रोहिणी और यशोदा मैया दोनों ही माताओं ने बलराम और श्रीकृष्ण को पहले अंगराग से उबटन करने के बाद कामधेनु और सुरभि गाय के धारोष्ण दुग्ध से ही स्नान करवाने के बाद उन्हें अच्छे से स्वच्छ जल से स्नान करवा कर नये वस्त्र पहनाये। नीली धोती के ऊपर पीताम्बर के बाद बाल संवार कर सिर को धूल आदि से बचाने के लिये पगड़ी बांध कर तैयार कर रही थी।
श्री कृष्ण को किसी की नजर न लग जाये इसलिये यशोदा मैया ने अपनी ही आंख के काजल का टीका डिठौना बनाकर उनके मस्तक पर एक ओर लगा दिया। नंद बाबा पहले ही तैयार होकर अपने साथियों के साथ बाहर खड़े कान्हा और बलराम को आवाज लगा रहे थे। गौचारण के लिये जाने का यह उनका प्रथम दिवस था। तभी उनके पुरोहित गर्गाचार्य जी ने आकर शंख बजाकर उदघोष करते हुये कान्हा को पुकारा। माँ ने कान्हा के हाथ में अपनी सुरक्षा और इधर उधर भाग रहे गायों के बछड़ों को संभालने के लिये एक लकुटिया उनके थमा दी। साथ में एक कलेवा की पोटली थी। भूख लगने पर खाने के लिये पकड़ा कर जाते जाते कांधे पर एक काली कमलिया भी डाल दी जिसे वह नींद लगने पर ओढ़ कर सो जाये। सारे साथी ग्वाल बाल गोपालक बन कर उनके साथ वन में गाय चराने के लिये जाने को तैयार थे।
यह उनके जीवन की पहली शिक्षा थी गायों के बछड़ों को संभालने की। शेष बड़ी गायों के लिये स्वयं नंदबाबा के साथ उनके साथी गोप-ग्वाले थे। गर्गाचार्य जी ने बलराम और श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाते हुये आशीर्वचन बोले। प्रकृति के सान्निध्य में कैसे रहा जाये इसकी शिक्षा तो प्रकृति के मध्य पहुंच कर ही मिलती है। सभी पेड़ पौधे लता वनस्पति किसका किस समय क्या उपयोग हो इसे समझाने के लिये ही तो उनके साथ वृद्ध जन थे उस विषय के पारंगत। उस स्थान के चप्पे चप्पे से उनकी पहचान थी। जंगल के हिंस्रक जीव-जंतुओं से कैसे बचा जाये। सभी पशु पक्षी उनका व्यवहार और उनको कैसे वश में किया जाये, यह ज्ञान भी तो आवश्यक था। भविष्य की पूर्व तैयारी थी यह कृष्ण के लिये।
अब राधा जी का मन भी वन में कन्हा के साथ जाने का था किंतु गोपालन में स्त्रियों को जंगल में न जाने देने से वह सुबाल ग्वाले का रूप धारण कर अपनी सखियों के साथ ग्वाला बन कर अपनी गायों के साथ उन्हें चराने के लिये लेकर आ गईं। श्री कृष्ण इस भेद को समझ गये। अब राधा उनके साथ ही मिल कर अपनी सखियों के साथ गायें चरा रहीं थी। वह जंगल भांडीर वन था जहां पर ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण का राधा के साथ उनकी सखियों के समक्ष विवाह करवाया। यद्यपि राधा उम्र में उनसे बड़ी और श्री कृष्ण उनसे छोटे थे । अब वह श्रीकृष्ण से गोपाल बन गये थे राधा जी के साथ।
जै गोविन्दा जै गोपाल ,
जै गोवर्धन गिरधारी लाल ।
उषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।