Monday, July 14, 2025
Home खबर टल्ली न्यूज़ New Delhi Railway Station Stampede : भीड़ पर आसक्ति के खतरे,अब दर्द को भी दर्द नहीं होता !

New Delhi Railway Station Stampede : भीड़ पर आसक्ति के खतरे,अब दर्द को भी दर्द नहीं होता !

by KhabarDesk
0 comment

New Delhi Railway Station Stampede :  नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के चलते हुईं डेढ़ दर्जन मौतों की खबर एक सनसनी सी फैला कर अब जल्द ही हवाओं में गुम होने जा रही है। एक अदद इंसान की मौत ने तो खैर हमें कब का झिंझोड़ना छोड़ दिया था मगर अब एक साथ हुई दर्जनों मौतें भी इस मुल्क को हिला नहीं पातीं।

रवि अरोड़ा

एक दो दिन की चर्चा और फिर किसी अन्य नई सनसनी के इंतज़ार में देश लग जाता है । रेलवे स्टेशनों , बस अड्डों , धार्मिक सत्संग , मंदिरों , रामलीलाओं अथवा कुंभ जैसी जगहों पर अचानक भीड़ उमड़ने और फिर भगदड़ मचने को यह देश इतनी ही सामान्य घटना मानने लगा है जैसे मानसून में वर्षा हो रही हो। शायद यही कारण है कि कुछ मिनटों पहले जहां लाशें पड़ी होती हैं, वहीं थोड़ी देर बाद फिर उतनी ही भीड़ उमड़ पड़ती है। कोई किसी से सवाल नहीं करता । कोई किसी को जवाब नहीं देता और चार लाइनों के शोक संदेश से सभी के कर्तव्यों की इति श्री हो जाती है। कुछ ज्यादा हुआ तो मुआवजे की घोषणा हो जाएगी और वह भी पीड़ितों को मिलेगा अथवा नहीं, यह जानने में भी चार दिन बाद किसी की रुचि नहीं शेष नहीं रहती । ज़हालत की हद तो यह है कि कुप्रबंध से हुई ऐसी मौतों से पीड़ित पक्ष भी उद्देलित नहीं होते और इसे विधि का विधान मान कर स्वीकार कर लेते हैं। रही सही कसर वे छिछोरे धर्मगुरू पूरी कर देते हैं जो ऐसी दुखदाई मौतों को मोक्ष की संज्ञा देते हैं।

शायद हमारा मुल्क दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसमें भीड़ को लेकर इतनी आसक्ति है। हजारों सालों से मेलों ठेलों में हमने उल्लास ढूंढा और बाद में धार्मिक स्थानों और नदियों को भी इससे जोड़ दिया गया । तमाम मनोवैज्ञानिक भीड़ से खौफ को तो मनोरोग मानते हैं और इसे एगोरा फोबिया जैसा भारी भरकम नाम भी देते हैं मगर न जाने क्यों स्वयं को भीड़ का हिस्सा बना लेने की भारतीय मनोग्रंथि के बाबत कुछ नहीं कहते ? माना कि अशिक्षित समाज भीड़ में आनंदित होता है, साथ ही भीड़ में खुद को सुरक्षित भी महसूस करता है मगर अब जब हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो गए हैं, आदमी पर आदमी चढ़े चला जा रहा है, भीषण आबादी से शहर और गांव बजबजा रहे हैं, तब भी क्या भीड़ सुरक्षा की गारंटी रह गई है ? यदि ऐसा है तो फिर क्यों हर चार छह महीने में देश के किसी न किसी कोने से भगदड़ से मौतों की खबरें सामने आ जाती हैं ? भीड़ का हिस्सा बनने को बेचैन समाज को क्यों नहीं कोई समझाता कि जिस भीड़ पर आप आसक्त हैं वही अब आपके लिए सबसे बड़ा खतरा है ? भीड़ में रह कर आप भीड़ से अलग सोचना भी चाहें तब भी भीड़ आपको ऐच्छिक आचरण की छूट नहीं देगी । भीड़ के बीच आपके निर्णय, आपकी व्यक्तिगत पहचान की कोई कीमत नहीं होगी और आपको हर सूरत वही करना होगा जो भीड़ चाहेगी । भगदड़ में ठेला जाना भी उसी का हिस्सा है।

हर बुराई के पीछे राजनीति को ढूंढने का मैं हामी नहीं हूं मगर इस जमीनी सच्चाई से कैसे मुंह चुराया जाए कि हमारी अधिकांश मुसीबतों की जड़ में देश की राजनीति ही नजर आती है । भीड़ पर भीड़ ही नहीं नेता भी आसक्त हैं और इसे अपनी सफलता मान रहे हैं। जितनी अधिक भीड़ उतना बड़ा सफलता का दावा । दुःख की इस घड़ी में क्या राजनेताओं से यह सवाल पूछा नहीं जाना चाहिए कि किस आधार पर यह मान लिया गया कि हमारा तंत्र इस योग्य है कि करोड़ों लोगों को एक ही शहर में एक साथ आमंत्रित कर सके ? भारत ही क्यों, दुनिया का कोई अन्य मुल्क भी क्या इस लायक हो सकता है कि करोड़ों लोगों का एक साथ एक छोटी सी जगह पर प्रबंध कर सके ? क्या नेताओं को जरा भी अंदेशा नहीं था कि हर मौके को उत्सव बना डालने और भेड़चाल पर यकीन करने वाला भारतीय समाज उनके इस आह्वान पर कैसी प्रतिक्रिया देगा ? फिर ऐसा क्यों हुआ कि झूठी वाहवाही लूटने और राजनीतिक स्वार्थों के चलते पूरे देश को एक साथ कथित धर्म लाभ के लिए न्योत लिया गया ? यदि इस देश में मासूमों की हो रही कीड़े मकौड़ों की तरह मौतों का जरा सा भी प्रभाव होता है तो क्या यही वह समय नहीं है जब किसी भी सार्वजानिक आयोजन में भीड़ को न्यौतने वालों की भी जवाबदेही तय हो और भगदड़ अथवा अन्य कारणों से हुई तमाम मौतों के लिए प्रबंधन के साथ साथ भीड़ का आह्वान करने वालों को भी आरोपी बनाया जाए ? यदि हम इसके लिए तैयार नहीं हैं तो यकीन जानिए ऐसी मौतों की न जाने और कितनी खबरें हमारा इंतजार कर रही होंगी ।

Disclaimer: इस लेख में व्यक्त विचार पूरी तरह लेखक के अपने निजी विचार हैं।

You may also like

Leave a Comment

About Us

We’re a media company. We promise to tell you what’s new in the parts of modern life that matter. Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Ut elit tellus, luctus nec ullamcorper mattis, pulvinar dapibus leo. Sed consequat, leo eget bibendum sodales, augue velit.

@2022 – All Right Reserved. Designed and Developed byu00a0PenciDesign