Jagannath Rath Yatra : जगन्नाथ रथ यात्रा इस वर्ष 27 जून शुक्रवार के दिन आरंभ हो रही है । आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया को 15 दिन अस्वस्थ रहने के पश्चात अपने नगर में सभी को दर्शन देने के लिये यह रथ यात्रा प्रतिवर्ष एक महोत्सव के रूप में निकाली जाती है। जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का एक मात्र उद्देश्य अपनी जनता और भक्तों को जिनका मंदिर में प्रवेश वर्जित है उन सभी को दर्शन देकर उनकी मनोकामना पूर्ण करने के लिये भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने आवास मंदिर से निकल कर बाहर आते हैं ।
Jagannath Rath Yatra का महत्व
इसका विशेष महत्व है क्यों कि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ शीतल जल से इतना अधिक स्नान करते हैं कि उन्हें बुखार आ जाता है । वैद्य उनका उपचार जड़ी बूटियों का काढ़ा पिला कर करते हैं । पूर्णत: स्वस्थ होने के पश्चात ही अपने भाई बलराम और बहिन सुभद्रा के साथ उड़ीसा की महारानी गुंडिचा मौसी के घर जाने के लिये सभी नगर वासियों को दर्शन लाभ देते हुये जाते हैं । सम्पूर्ण जगत के स्वामी के दर्शन का अधिकार तो सभी को है इसके लिये वह अपना आवास छोड़कर स्वयं भक्तों के घर तक पहुंच जाते हैं । भगवान के लिये उनके भक्तों का स्थान सबसे ऊंचा है। यदि भक्त पूर्ण आस्था और विश्वास से भगवान के प्रति समर्पित है तो भगवान भी अपने भक्त की रक्षा के लिये सारे नियम तोड़ देते हैं ।
रथयात्रा का प्रारम्भ कैसे हुआ :- jagannath Rath Yatra
मथुरा में श्रीकृष्ण द्वारा अपने मामा कंस के वध के पश्चात जब पुन: महाराज उग्रसेन गद्दी पर बैठे और राज्य मे शान्ति स्थापित हो गई । तब एक दिन सुभद्रा ने अपने बड़े भाई बलराम और श्री कृष्ण से मथुरा भ्रमण की इच्छा प्रकट की । अपनी बहिन सुभद्रा की इच्छा पूर्ण करने के लिये सुरक्षा की दृष्टि से उसे अपने मध्य में बिठा कर बलराम और श्रीकृष्ण ने नगर भ्रमण कराया । इसी प्रकार से द्वारिका की स्थापना होने पर उसके वैभव और समुद्र के मध्य बसी उस अलौकिक पुरी के नगर भ्रमण की सुभद्रा की इच्छा पूरण करने के लिये बलराम और श्रीकृष्ण ने उसे अपने मध्य बिठाकर हर स्थान का महत्व और परिचय कराते हुये नगर भ्रमण कराया । इस तरह रथ यात्रा का प्रारम्भ हुआ । सुभद्रा श्रीकृष्ण की प्रिय बहिन के रूप में योगमाया है जिन्होंने श्रीकृष्ण की सहायता के लिये सुभद्रा के रूप में जन्म लिया था । श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी अनंतशक्ति के प्रतीक शेष नाग जी के अवतार हैं । जै जगन्नाथ।
*जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ*।
उषा सक्सेना