Devshayani Ekadashi 2025 : आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के चार माह के लिये योग निद्रा में चले जाने से कोई भी शुभ कार्य नही होते । इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं । सनातन हिन्दू धर्म में एकादशी को भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न माना जाता है। कथा है कि एक बार जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे तभी मुर नामक दैत्य ने उन पर आक्रमण कर दिया। तब भगवान विष्णु के ही शरीर से एक कन्या ने उत्पन्न होकर उनकी मुर दैत्य से रक्षा करते हुये उन्हें जागृत किया । जिस दिन उनकी उत्पत्ति हुई उस दिन एकादश तिथि थी। अत:मुर दैत्य से युद्ध करते हुये उसे मारने के पश्चात भगवान विष्णु ने उन्हें एकादश तिथि के नाम पर एकादशी नाम देते हुये कहा कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करेगा मैं उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करूंगा।
4 माह के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में हो जाते हैं लीन
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं । आज के दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिये समस्त सृष्टि का पालन करने के लिए भगवान शिव को अपना कार्य भार सौंपकर योग निद्रा में लीन हो जायेंगे ।
पौराणिक कथा:- दैत्येन्द्र बलि के स्वर्ग पर अधिकार कर लेने से देवराज इन्द्र अपनी रक्षा के लिये भगवान विष्णु के पास गये तब भगवान विष्णु ने उन्हें रक्षा का वचन देते हुये वामन अवतार लेकर दैत्येन्द्र बलि के यज्ञ में तीन पग भूमि का दान मांग कर एक पग से पृथ्वी दूसरी से आकाश नाप लिया। प्रश्न तीसरे पग का आया तो बलि ने अपना शीश झुका कर कहा :-“प्रभु मेरे सिर पर अपना पैर रख कर मुझे कृतार्थ करिये ।
तब विष्णु जी ने तीसरा पैर उस के सिर पर रखते हुये उसे रसातल पहुँचा दिया अंत में प्रसन्न होकर विष्णु जी ने दैत्य बलि से वरदान मांगने को कहा ।
बलि ने कहा:- प्रभु इस रसातल में समुद्र के भयंकर जीव जन्तुओं से मेरी रक्षा कौन करेगा । अत:मेरी रक्षा के लिये आप मेरे द्वार पाल बनशकर रहिये । अब विष्णु जी वचन बद्ध होकर दैत्येन्द्र बलि के द्वारपाल बन कर उनकी रक्षा कर रहे थे ।शअंत में लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाते हुये उन्हें मांगा । प्रश्न वही था दैत्येन्द्र की रक्षा कौन करेगा ? तब बारी आई त्रिदेव की। विष्णुजी चातुर्मास चौमासे देवशयनी से लेक देवोत्थानी एकादशी तक राजा बलि के द्वार पाल बन कर रक्षा करेंगे । तब तक तक जगत का पालन महादेव करेंगे । इसके बाद देव उठनी एकादशी को महादेव उनका कार्य भार उन्हें सौंपकर दैत्येन्द्र बलि की शिवरात्रि तक रक्षा करेंगे । इसके पश्चात ब्रह्मा जी की बारी आयेगी और वह भी देवशयनी एकादशी तक दैत्येन्द्र बलि की रक्षा करेंगे ।वतीन पग भूमि के दान ने त्रिदेव को दैत्येन्द्र बलि का द्वारपाल बना दिया।
दूसरी कथा राजा मान्धाता की है, जब उनके राज्य में तीन वर्ष तक बारिश नहीं हुई तो प्रजा अपनी रक्षा के लिये राजा मान्धाता के पास आई । राजा मान्धाता यह ज्ञात करने के लिये कि मुझसे ऐसा कौन सा बड़ा पाप हुआ जिसके कारण अकाल पड़ा। वह तपस्या कर रहे अंगिरा ऋषि के पास गये और शंका का समाधान पूंछा । तब ऋषि ने कहा यह सतयुग है यहाँ छोटे से अपराध का भी बड़ा दंड भोगना पड़ता है । आप देवशयनी एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु को प्रसन्न करिये जिससे कि वह आपकी जनता के कष्ट दूर करें । राजा मान्धाता ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा के साथ इस व्रत को किया जिससे प्रसन्न होकर बारिश हुई और जनता के कष्ट दूर हुये । ऐसी है एकादशी की महिमा जिसे स्वयं श्री हरि विष्णु का सान्निध्य प्राप्त है।। ओम् नमो भगते वासुदेवाय ।।
ऊषा सक्सेना