Dattatreya Jayanti: भगवान दत्तात्रेय जयंती:- दत्त सम्प्रदाय के लिये ये दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। आज के दिन अत्रि मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनके द्वारा मांगने पर स्वयं अपने अंश को देते हुये पुत्र के रूप मेंं माता अनुसूया के गर्भ से जन्म लिया। अत्रि मुनि को स्वयं को देने के कारण ही उनका नाम भी दत्तात्रेय पड़ा।(दत्त+अत्रि+इयम्)! मार्ग शीर्ष की पूर्णिमा चंद्रमा की समस्त कलाओं सहित शोभायमान होते अत्रिपुत्र दत्तात्रेय।
Dattatreya Jayanti: दत्त संप्रदाय के जनक थे दत्तात्रेय
लोककथा :- एक कथा के अनुसार जब त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों मिलकर सती अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने आये। उस समय अत्रि मुनि आश्रम से दूर कहीं तप में लीन थे और माता अनुसूया अकेली थीं। द्वार पर जाकर भिक्षां देहि कहते हुये तीनों ने आवाज लगाई। माता अनुसूया देखते ही समझ गई कि यह कौन हैं। वह अंदर से भिक्षा लेकर आईं तो उन तीनों ने उसे लेने से इंकार करते हुये कहा :-हमें तो भोग के लिये कुछ और चाहिये हम साधारण भिक्षुक नहीं। आप हमारी इच्छा पूर्ण करे। माता अनुसूया समझ गई अपनी दिव्य दृष्टि से परख लिया कि यह त्रिदेव तीनों मिल कर मेरे सतीत्व की परीक्षा लेने आये हैं। अब मैं इन्हें बतलाती हूँ कि सतीत्व क्या होता है। सोचकर मन ही मन उन्होंने अपने पति का स्मरण करते हुये उन तीनों पर ही अपने कमंडल से लेकर जल छिड़क दिया यह कहते हुये कि अब तुम तीनों ही पुत्र बन कर मेरा दुग्ध पान करो।
एक सती के प्रभाव से वह तीनों ही छै:महीने के बालक बनकर रुदन करने लगे। तब उन्हें गोद में लेकर माता अनुसूया ने उन तीनों को अपने हृदय का अमृतपान कराते हुये उनकी क्षुधा शांत की । तभी अत्रि मुनि आ गये और लक्ष्मी ,सरस्वती के साथ पार्वती जी अपने पतियों को ढूंढ़ते हुये विलाप करती बोलीं अरे, धूर्त्त नारद हम सब ने क्यों तेरी बातों में आकर अपने आपको श्रेष्ठ सती सिद्ध करने के लिये अपने पतियों को अनुसूया जी की परीक्षा लेने भेजा, अब हम क्या करें ?
इस अपराध बोध से लजाती सकुचाती वह तीनों ही अत्रि मुनि के आश्रम में आईं। नन्हें शिशु के रूप में अपने पतियों को देख शर्मिंदा होकर अनुसूया जी के चरणों में गिर कर क्षमा मांगने लगी कि हम तीनों अब आपकी बहुयें हैं। आप हमारे अपराध को क्षमा कर इन्हें हमें लौटा दीजिये। अनुसूया जी ने तीनों को उठा कर गले से लगाते हुये कहा पहचान कर ले जाओ अपने पतियों। तीनों ही एक समान कैसे पहचाने, उनके लटके हुये चेहरे देखकर अनुसूया जी ने फिर अपने कमंडल से जल लेकर उनपर छिड़का तो वह तीनों ही अपने रूप में आ गये। अत्रि मुनि ने कहा यदि तुम तीनों ऐसे ही चले जाओगे तो फिर यह आश्रम हमारी संतान के बिना फिर से सूना हो जायेगा और मेरी तपस्या निष्फल। अब अनुसूया किसे पुत्र कह कर खिलायेगी। यह सुनकर ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही अपना अंश अत्रि मुनि में समाते हुये बोले हम तीनों ही एक रूप होकर आपके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे जिनका नाम दत्तात्रेय होगा। ब्रह्मा जी ने पृथक से चंद्रमा के रूप में अत्रि मुनि के पुत्र बनकर जन्म लिया।
शिव जी दुर्वासा मुनि के रूप में अवतरित हुये । विष्णु जी ने दत्तात्रेय के रूप में शिव और ब्रह्म दोनों को समाहित कर जन्म लिया। जिस दिन अत्रि मुनि के पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ उस दिन मार्गशीर्ष की पूर्णिमा थी। इसीलिये आज का यह दिन भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है। दत्तात्रेय की नाथ सम्प्रदाय में महायोगी और महागुरु के रूप में उनकी मान्यता है। उन्हें भगवान विष्णु का छठवां अवतार एवं कलियुग का देवता माना जाता है। वह ब्रह्मचारी अवधूत और दिगम्बर हैं। सर्वव्यापी हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में विशेष रूप से उनकी मान्यता है। नाथ सम्प्रदाय एवं शैव भक्त उन्हें विशेष रूप से शिव का अवतार एवं महायोगी होने से अपना गुरु मानते हैं। मन और वाणी से संकट के समय पुकारने पर वह अपने भक्त को उस संकट से उबारते हैं।
उन्होंने जीव और जंतुओं को भी अपना गुरू माना । इस प्रकार उनके 24 गुरू थे । Dattatreya Jayanti के दिन दत्तात्रेय जी के बाल रूप की पूजा करने से त्रिदेव की पूजा का फल मिलता है।
ऊषा सक्सेना
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए है और इसका उद्देश्य किसी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठक कृपया अपनी विवेकपूर्ण समझ और परामर्श से कार्य करें।