Chaitra Navratri : शैलपुत्री माता पार्वती का तीसरा रूप चंद्रघंटा का है। हिमवान की पुत्री पार्वती ने जब अपने तप के बल पर शिव जी को वर रूप में पा लिया तो वह अपने आदिशक्ति रूप को प्रकट कर मस्तक पर सुंदर अर्द्ध चंद्र के ऊपर घंटे के आकार का तिलक लगाने लगी। इससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। महिषासुर ने ब्रह्मा जी से वरदान में अमरत्व का वरदान न मिलने पर ही कहा था कि -“मेरी मत्यु किसी स्त्री के द्वारा हो “। जब ब्रह्मा जी ने इसका कारण पूछा तो वह कहने लगा कि -“मुझ दानव को जब देवता और असुर भी पराजित नहीं कर सकेंगे तो बिचारी स्त्री तो वैसे ही कमजोर और कोमल है वह मुझ जैसे शक्तिशाली से कैसे जीत पायेगी”। यह सुनकर ब्रह्मा जी ने भावी प्रबल सोचकर वरदान में इच्छित मृत्यु का वरदान दे दिया ।
वरदान पाकर महिषासुर अब पहले से भी और अधिक ही अत्याचारी हो गया। अब उसे कोई भी युद्ध में परास्त नही कर सकता था । वरदान पाकर वह सभी के लिये अजेय हो गया। देवता उसके डर से भाग कर भगवान विष्णु जी के पास गये। तब विष्णु इसका समाधान पाने के लिये सभी के साथ ब्रह्मा जी के पास आये । ब्रह्मा जी ने कहा कि उसे कोई शक्तिशाली स्त्री ही युद्ध में पराजित कर सकती है। आदिशक्ति ही देवी पार्वती हैं। अत: हमें उनके पास ही जाकर प्रार्थना करनी चाहिए। इसके लिये सभी देवता ब्रह्मा और विष्णु जी के साथ शिव जी के पास आये और आदिशक्ति के लिये देवी दुर्गा का आवाहन करने लगे ।
देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण करते हुये कहा -* मुझे तुम सभी मिल कर अपनी तेज रूपी शक्ति मुझे प्रदान करो तभी मैं शक्तिशाली होकर उसका सामना कर सकूंगी*। देवी की बात सुन कर ब्रह्मा विष्णु और महादेव ने अपने मुख खोल कर जो ऊर्जा प्रदान की उससे देवी आदिशक्ति का महिषासुर के वध के लिये चंद्रघंटा के रूप में अवतरण हुआ। यह देख अन्य सभी देवताओं ने भी उन्हें अपनी शक्ति प्रदान करते हुये अपने अस्त्र शस्त्र देकर विभूषित किया । अब देवी का तेजोमय रूप सिंह पर सवार होकर सभी देवताओं के साथ महिषासुर दानव का युद्ध में वध करने चल दीं । इस प्रकार से देवी की आदिशक्ति चंद्रघटा ने ही महिषासुर के साथ युद्ध करते हुये उसका वध किया ।
महिषासुर के वध से देवता एवं ऋषि मुनियों को प्रसन्नता हुई और सभी ने मिलकर उनकी स्तुति करते हुये पर्वतराज की पुत्री पार्वती को महिषासुरमर्दिनी देवी आदिशक्तिचंद्रघंटा का नाम दिया । सत्य तो यह है कि जहां पुरुष हारता है वहीं से नारी की अंत:शक्ति जागकर सामूहिक रूप से सभी की शक्ति का तेजो मय रूप धारण कर शत्रु का संहार करती है। नारी के अंतस में छिपी तमरूपी काली का जागरण ही दैत्य दानव और असुर का वध कर पाती है । आज हम जब नौ दुर्गाओं के नौरूप की साधना करते हैं तो हमें उसके मनोवैज्ञानिक तथ्य को भी तो समझना होगा तभी देवी की आराधना सफल होगी अन्यथा केवल मूर्ति पूजा से का क्या अर्थ ,उसके पीछे छिपे रहस्य को भी समझो । देवीआदिशक्ति चंद्रघंटा महिषासुरमर्दिनी आज नारी जाति को इतनी शक्ति दे कि वह समाज में उत्पन्न हो रहे राक्षस दैत्य और दानवों का स्वयं संहार कर सके ।
या देवी सर्वभूतेषु चंद्रघटा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
*वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् ।
सिंहारूढ़ा चंद्रघंटा यशस्विनी*।।
उषा सक्सेना-